अद्भुत रस

  • हमारा जो पद है,वो आत्मा है।जो हमारे भीतर है,वह सूर्य की तरह प्रकाशित है।अनन्त सूर्यों का सूर्य है।
    वो तुम्हारा आधार है,उसे स्मरण करके कार्य करना चाहिये।वही सत्ता है और कुछ नहीं।
  • सब में वही आत्मा है,इसलिए जब हम देखें तो सबमें वही आत्मा ( परम आत्मा ) को देखें।
    वो दिखे या न दिखे पर उसे स्मरण करके कार्य करना चाहिए।
  • सब में एक ज्योति है,यह सत्य है।ऐसा जो देखता है वह सम्यक् देखता है।
    ऐसा देखा नहीं जाता अनुभूति होती है,अंतर्दृष्टि से ज्ञानचक्षु से ।
    यह अनुभव है। को अद्भुत रस कहते है।
    ।।श्री गुरूजी।।

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