कृष्ण नाम आत्मा का है।जिसने सबको आकर्षित किया है।
धारण किया है।
हमारा पद जो है-आत्मा है।
वो आत्मदेव है।
इस आत्मदेव से बढ़कर कोई देव नहीं है।जो हमारे भीतर है।
वो सूर्य की तरह प्रकाशित है।
अनन्त सूर्यों का सूर्य है।
वो तुम्हारा आधार है।
वही सत्ता है।
वह सत है।और कुछ नहीं।
वो दिखे या न दिखे,उसको स्मरण करके कार्य करना चाहिए।
सबमें एक ज्योति है।स्त्री-पुरुष तो बाहरी रचना है,भीतर एक ज्योति के सिवाय कुछ नहीं है।
ऐसा जो देखता है,वह सम्यक देखता है।
तब वह समदर्शी हुआ।
ये देखा नहीं जाता।अनुभूति होती है।
दिव्य स्वरूप हमारा ज्ञान स्वरूप है।अहं आत्मानं।
तो जो कर्म करने पर दोष न हो,नाश न हो,अभाव न हो-ये निष्काम कर्म जब अटल हो जाता है।तो एक बार भी बुद्धि शुद्ध हो जाय।
आत्मा स्वयं ज्योर्तिभवती-एक बार भी फ्लैश हो जाय,तो सब भयों से मुक्ति मिल जाती है।
।।श्री गुरुजी।।