
खोजने की स्थिति भविष्य की ओर जाती है।अंदर ईश्वर है।वर्तमान में हुए की पा गये।
रुको क्षण भर और देखो कि जिसे तुम खोज रहे थे,उसे तुम पाये हुए हो।
दृष्टा,दृश्य रहित स्थिति की संधि में आपको ठहरना है।
इसी स्थिति में रहने में-समाधि आनन्द प्राप्त हो जायेगा।
उस स्थिति में साधक जो बोलेगा,वही होगा।
तीनों गुण, बुद्धि शुद्ध होकर प्रकृति में लीन हो जाती है।
प्रकृति शुद्ध होकर पुरुष में लीन हो जाती है।
तब उसकी शक्ति अलौकिक हो जाती है।
तब वह राम और श्याम से कम नहीं।
आत्मा ही सबकी त्राता है।
मैं जैसा हूँ,वैसा आपसे चाहता हूँ।
।।श्री गुरुजी।।