—-मुझे आत्मदर्शन नही हुआ,यह सब भ्रांतिपूर्ण बातें है,आत्मा ही तो तुम हो, आत्मा से ही सब कार्य हो रहा है,तुमको खाली अपना विकार रूपी कचरा साफ़ करना है।कचरा साफ़ करने के बाद आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवती।
—-जब शांत हुऐ, शब्द सुनाई पड़ने लगेंगे।आकाश तत्व के विकार है-काम,क्रोध,लोभ,मोह,भय।मौन होने पर विकार नष्ट होंगे।भविष्य में क्या होने वाला है,गुरुवाणी,गुरु आदेश सुनाई पड़ने लगेंगे।
—-बक बक करना बैखरी का काम है,बोलना,पूजा,पाठ,गीत,आदि बैखरी तो है,स्तुति करना ही निंदा करना है।इनसे परे होना है,परा में तो वहाँ मौन है।
—-मौन रहने का अभ्यास करो बाह्य जगत के लिये अज्ञानी बनो,जब तक आवश्यकता न पड़े ,मत बोलो।
—-अभेद आत्मा में भेद उतपन्न हो गया तो अविद्या हो गई।हम ही अनेक जन्मों से शरीर भाव मानते आ रहे है,इसलिये हम देह है।देह भाव गये बिना सतच्चिदानन्द प्राप्त नही हो सकता।
सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा ! दीप सिखा सोई परम प्रचंडा !!
आतम अनुभव सुख सुप्रकासा ! तब भव मूल भेद भ्रम नाशा !!—————————-अर्थात वह ब्रम्ह ही मै हूँ ,सब ब्रम्ह ही है ,,ऐसा अखंड – निरंतर वृत्ति [ चिन्तन] ही ज्ञानदीपक की परम प्रचण्ड दीपशिखा है ! ऐसे अखंड वृत्ति= चिन्तन से ही आत्मानुभव [आत्मज्ञान] के आनंद [ सुख ] का सुंदर प्रकाश होता है व संसार के मूल भेद रूपी भ्रम [अज्ञानता ] का नाश होता है !
———अपने सहित हर रूप में एक ईश्वर का दर्शन ,यही यथार्थ दर्शन है, प्रेम-भक्ति -ज्ञान =योग है !