तेरा मैं

साधु लोग साधना करते है सारा शरीर मग्न हो जाता है माने सारा शरीर बधिर हो जाता है,सारा शरीर बधिर हो जाता है जब बधिर हो जाता है तो बाहर का कुछ भी ज्ञान नहीं रहता,सम्बंध नहीं रहता,विषयों का सम्बंध टूट जाता है।
उतने देर तक जब तक बधिरता है लेकिन बाहर का सम्बंध टूटता है,भीतर तो कोई ज्ञान नहीं होता।

भीतर का ज्ञान है-आत्मज्ञान है,बोध तो नहीं होता।भीतर ज्ञान अगर हो जाय तो फिर क्या करना,सारा संसार संसार की तुम्हारी चर्या बदल जाय।तुम्हारी उस दिन से चर्या बदल जाय, जी हां।
अपना,पराया भेद चला गया,मैं मेरा ये भेद समाप्त हो गया।फिर स्त्री कहके,स्त्री नहीं कहोगे फिर,स्त्री नहीं रह जाती,तुम्हारी अर्धांगिनी जो है, जिसको तुम पत्नी,पत्नी को पत्नी नहीं कहोगे जिस दिन ऐसा हो जायेगा।
एक एक कौड़ी के लिए मारे मारे न फिरेगो।

जिसका नाम है प्रत्याहार,बाह्य संवेदना माने बाहर का संवेदना गया, भीतर का सब बाकी है।वो कहाँ जायेगा?

जितने देर तक आप बधिर है उतने देर तक आप तन्मय है।

आप,बैठे बैठे पैर बधिर हो जाता है कि नहीं,जब तक बधिर है,काम में आता है क्या?नहीं।लेकिन उसके बाद उसको ज्ञान हो गया क्या?नहीं।

सारा शरीर ऐसा बधिर हो जाता है तो आत्मज्ञान हो गया क्या?लेकिन बधिरता गई,फिर तुम वही।मैं मेरा,तू तेरा,मार साले,काट साले,तू ऐसा,तू ऐसी तू काली,तू पीली तू नीली। ये आत्मज्ञान है?

वो ठगते है,दुनिया को बनाते है,पाखंडी है ये।आप हमारे मुंह से कभी नहीं सुनेंगे,मैं योगी हूँ,मैं संत हूँ,महंत हूँ।

कोई बोले तो मैं चिढ़ता हूँ,बंद करो ये सब।
कह देता हूँ मैं तुम्हारे सरीखा नम्बरी हूँ,मैं नम्बरी हूँ,सही में नम्बरी हूँ मैं।
नम्बरी न होता तो इतना,घर बार छोड़कर फिरता है क्या?

उसका चर्या में अंतर आ जाता है,उसका भाषा में अंतर आ जाता है,उसका अधिकार में अंतर आ जाता है।समाज में उसका,सब बातें बदल जाती है।सहज बात नहीं है।

थोड़ी देर बैठ गये, शरीर की सुधि चली गई,बाबा,हम पहुंच गये, बस।

हम समाधि में है, समाधि इसको नहीं कहते।ये तो खाली तुम्हारी शरीर तो बधिर हुई।शरीर केवल शून्य हुआ।और शून्य करके आपके विषय की ओर सम्बंध नहीं रह जाता।

लेकिन तुम्हारे अंदर परिवर्तन हुआ क्या?तुम्हारे कर्मों में,तुम्हारी इच्छा कामना में,ज्ञान में परिवर्तन हुआ क्या?नहीं।

ये अगर परिवर्तन नहीं हुआ तो क्या यही यही योग स्थिति है,यही समाधि है क्या?

हमारे पास ऐसे बहुत से लोग आते है हम पहुंच गये, हमे कुछ दृश्य दिखे, मेरा ऐसा ऐसा,ऐसा ऐसा है।
तुम्हारा जब मेरा ही नहीं गया,जब मेरा नहीं गया तो तेरा कहाँ से जायेगा।

सब मेरा,तेरा है ही नहीं है।
अगर समाधि लग जाती तो मेरा न तेरा-सब तेरा है।

ये सब तेरा है-फिर झगड़ा कहाँ रह गया,ये।झगड़ा कहाँ रह गया,जब सब तेरा ही है,तो झगड़ा कहाँ रह गया?
।।श्री गुरुजी।।

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