
एको अपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधाभृतेन तुल्यः दशाश्वमेधि पुनरेति जन्म कृष्णा प्रणामी न पुनर्भवाय !!
अर्थात् -एक बार भगवान् कृष्ण को सही धारणा से प्रणाम [स्मरण] कर लिया तो उसकी तुलना दस अश्वमेध यज्ञ करने वाले से भी नहीं हो सकता है ! किन्तु इन दस अश्वमेध यज्ञ करने वाला का मुक्ति नहीं होता अर्थात् पुनर्जन्म होता है परन्तु श्रीकृष्ण को श्रद्धा सहित सही धरणा से प्रणाम -स्मरण करने वाला का पुनर्जन्म नहीं होता !
—-कृष्ण नाम आत्मा का है,कृष धातु से ये कर्ष शब्द है। जो खींच रखा है। जिसने सबको आकर्षित किया है,धारण किया है। ऐसा जो महान है वही ब्रम्ह है। कृष्ण को योगेश्वर कहा, उनके प्रत्येक शब्द योग है। इस आत्मा का दर्शन (जैसे जुगनू चमकती है,वैसा) एक बार भी अभ्यास के द्वारा हो जाये तो वो माँ के पेट में फिर नहीं आता। दस अश्वमेघ के बराबर फल होता है। निष्काम व्यक्ति ही आत्मा का दर्शन करते है। दस अश्वमेघ करने वाला का पुनर्जन्म है। लेकिन,कृष्ण प्रणामी न पुनर्भवाय। याने जन्म मरण के फेरा से निकलकर ,मोक्ष के मार्ग में आगे बढ़ता है।
—-कृष्ण के जैसे एक भी सारे संसार में नहीं हुआ है। लेकिन ऐसे आदर्श का एक-एक शब्द को भूल गए। एक शब्द भी अनुभव में नहीं आया,केवल गप्पा मारते है। जरा भी संकोच नहीं आता की हम क्या करते हैं।
—-कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, ‘की तू खाली निमित्त बन ,ये देख मैंने सब करके रख दिया है। अरे काहे को काँपता है,काहे को डरता है?’ अर्जुन कांप गया था।
—-कृष्ण ने हमको कितना बढ़िया समझाया है की निरोध कब होता है। ये निरोध बिना सतगुरु के भी होता है,लेकिन कब? उत्कट इच्छा हो और चल पड़ा। फिर आगे क्या है,आगे क्या है? अवश्य उस पद को प्राप्त कर लेगा जिसका नाम परम पद है।
—-मामेकंशरणम् ब्रज। ब्रज माने ‘टू गो’।जाओ। तुम वहां जाओ। अर्थात् वो जो आत्मा है उसकी शरण में जाओ। माने अपने आप में समर्पित होओ।
—अनेक जन्म संसिद्धि।अनेको जन्मों के बाद कृष्ण,कृष्ण हुए।तद्धाम परमं मम्। वो(आत्मा) मेरा धाम है। वहां पहुँचने के बाद आज कृष्ण,कृष्ण है।
—-गीता एक ग्रन्थ है, जो शास्त्र के बराबर है। कृष्ण ने उसका निचोड़ ही रख दिया है। नेहाभिक्रम नाशोअस्ति प्रत्यवायो न विद्यते,स्वल्पमपस्य धर्मस्य त्रायतो महतो भयात्। ये जो अभिक्रम है अभी माने भीतर। अंदर अंदर में दीप। न नाशम् इसका नाश नहीं होता। उल्टा फल दोष भी नहीं है। तो जो कर्म (निष्काम,आत्मज्ञान हेतु) करने पर दोष न हो। नाश न हो। अभाव न हो। तो क्या समझेंगे उसको। एक बार भी फ्लेश हो जाए तो सब भयों से मुक्ति हो जाती है। निष्काम कर्म ही धर्म है।
—-गीता में सब पूर्व नियोजित है,कहा गया है। अतः सिद्धि ,असिद्धि,हानि,लाभ को बराबर करके कार्य करो। यही व्यवहार है। दिव्यम् ददामि ते चक्षुः। जिससे जो पूर्व नियोजित है,देखा जा सके।
—-कृष्ण ने कहा है,अखण्ड रूप से मेरे चिंतन में दिन-रात लगा हुआ है,डूब गया है। पगला गया है,उसका रखवाला मैं हूँ।इससे बढ़कर और क्या आश्वासन चाहिए?जब वह अपने आप में लीन हो जाता है तो योगक्षेमं वहाम्यहम् स्वयं होने लगता है।
—-सारा जगत वासुदेवमय है,अर्थात् वासुदेव ही प्रकृति है।इसलिए जो कार्य होते है,वह प्रकृति ही करती है।प्रकृति अपना कार्य स्वयं करती है।आप कुछ नहीं करते।उसको सहायक मिल जाती है।
—-श्रीमदभागवत सम्पूर्ण योग है,ऐसा कौन सा विषय है,जो उसमे न हो।
—-कृष्ण जैसे महान,दिव्यशक्ति सम्पन्न सारे जग में नहीं है,उनने भी कहा बुद्धि जड़ है।एक भी संकल्प बाकी है तो काहे का योगी और सन्यासी?ये कृष्ण बोल रहे है,मैं नहीं बोल रहा हूँ।
—-कृष्ण जैसे डिवाईन बीइंग जन्मते नहीं, प्रगट होते हैं, मानव जाति को सही मार्ग बताने के लिए।
।।श्री गुरूजी वासुदेव रामेश्वर जी तिवारी।।