निर्गुण सगुण होकर साकार होता है।साकार-सा+आकार।सा=वह।वह शक्ति जो कार्य करती है।कार, कुरु(धातु)से बना है।कार><कारि=कार्य।
निर्गुण होते हुए वह गुणयुक्त है।
जब निर्गुण है,जब गुण नही,तब क्या है?निराकार है।फिर वह क्या है?
वह शक्ति है।क्योंकि शक्ति निराकार होती है।उसका कोई रूप(आकार)नहीं है।
तब ये रचना कैसी ?
वह ,शक्ति से सगुण है।स=वह।गुण=गुण।गुण ही शक्ति है।उदाहरणार्थ-
जब तक साधक अध्ययनरत होता है तब तक वह गुणग्राही रहता है।
गुण ग्रहण करने के पश्चात,वह शक्ति सम्पन्न होता है।क्योंकि शक्ति को गुण के रूप में कहा गया है,गुण ही (वह) शक्ति है।
प्रशिक्षण अवधि पूर्ण होने पर,गुण ग्रहण करने के पश्चात,अधिकार सम्पन्न होने के पश्चात वह अधिकारी होता है।वह गुण सम्पन्न हो जाता है।
वह[गुण=शक्ति से]सब कुछ,साकार होता है।यही अद्वैत सिद्धान्त है।
वही,महाशक्ति (परमात्मा) के नाम से कही गई है।यही शक्ति अपने आप में पूर्ण है।वेदान्त दृष्टया परमात्मा-ऐसा नाम दिया गया है।
इसी को आत्मा कहा गया है।आत्मा-स्थिति है।आत-आनन्द का घोतक है।मकार, बिन्दु पूर्णत्व का घोतक है।तब यह भी सिद्ध हुआ की आत्मा ही परम है।अर्थात-
दशों दिशाओं में व्याप्त है।
वह कौन है? कहाँ है?
वह तुम हो।
आत्मा त्वम् गिरिजामतिः सहचराः प्राणाः। शरीर गृहं पूजां ते विषयापभोग रचना निद्रा,समाधिस्थिति।
आत्मा=शिव।गिरिजा=पार्वती।मति=बुद्धि।पार्वती=पर्वत रूपी शरीर में निवासरत शक्ति।
जैसे सूर्य और उसकी किरण में भेद नहीं है,वैसे ही आत्मा और (सहचर)प्राण में भेद नहीं है।
निद्रा=विषय,विषयाधीन।
समाधि=विषयातीत।कालातीत।
निर्गुण सगुण निराकरण
।।श्री गुरूजी।।
