- ,वो शक्ति परमशक्ति है,क्योंकि सृष्टि के पहले एक सत के सिवाय कुछ भी नहीं था।इसलिए शक्ति ही ओत प्रोत दिखती है,वो नित्य है,दसो दिशाओं में परिपूर्ण है।वो शिव है,कल्याण है।जो कोई उसको याद करेगा,करते रहेगा,उसकी बुद्धि शुद्ध हो जाएगी।शुद्ध सात्विक हो जाएंगे।और भूत, भविष्य आदि का स्फटिक मणिवत जब बुद्धि उसकी हो जाएगी।तब आत्मा ज्योति स्वरूप प्रकट हो जाएगी।तब वो संसार का स्थिति,उत्पत्ति,सृष्टि का रहस्य जो है,बोध होने लग जाता है।वो स्वयं बोध स्वरूप है,आत्मा स्वयं बोध है।
- आत्मा होने से हमें ज्ञान होता है,यह झूठ बात है।ज्ञान स्वरूप है आत्मा।स्वयं ज्ञान है,आत्मा ही तो ज्ञान है।वही तो निराकार है,कोई आकार नहीं उसका, शक्ति का कोई आकार नहीं है।शक्ति का दुरुपयोग हम अपनी बुद्धि से करते है।बुद्धि का इंस्ट्रूमेंट जो हमारे शरीर में है,उससे शक्ति का उपयोग दुरुपयोग करते हैं।और आत्मा पर आरोप करते हैं और नाना जन्म लेते रहते हैं,जन्मते मरते रहते हैं।
- आत्मा ज्ञान स्वरूप है।नित्य सर्वगतः शिवः।वो नित्य है सर्वगत है और शिव(बुद्धि विमल,स्फटिक मणिवत,स्वच्छेषु प्रतिबिम्ब वत,भूत भविष्य वर्तमान सब दिखना)कल्याण है।उसकी बुद्धि सदा ज्ञान स्वरूप है,ज्ञान रूपी ज्योति है,प्रकाशित रहती है,विकसित रहती है।उसको भूत भविष्य वर्तमान,त्र्यं संयमात अतीत अनागत ज्ञानं।ये तीनों का जब संयम हो जाता है,तो अतीत अनागत,भूत और भविष्य का बोध होने लगता है।वो स्वयं उसकी बुद्धि में,स्फटिक मणि में आके सब प्रकट हो जाती है।वो नहीं आता जाता है कहीं।क्योंकि आत्मस्थ जब बुद्धि हो गई तो कहां आना जाना है।सर्वदिक है,जो उसको जानना है,समझना है,सब कुछ है।
- रामदासजी ने भी कहा है,अरे भई,आत्मा शक्ति है,महाशक्ति है,पूर्ण शक्ति है।पूर्ण ब्रह्म है,वही आत्मा,वही परम्,वही परमात्मा है।और वो शक्ति ज्ञान है,वो निराकार है,ज्ञान निराकार है।ज्ञान का कोई आकार नहीं,इसलिए उसको निराकार कहा।जब निराकार है तो वो निर्गुण भी है।क्योंकि शक्ति तो कुछ करती नहीं,हम अपने बुद्धि से उस शक्ति का सदुपयोग और दुरूपयोग करते हैं।लोग उस आत्मा को जानना चाहते हैं, जो निराकार है।सगुण का दर्शन होता है,निर्गुण का नही होता है।वही आत्मा स्वयं ज्योति,जब आपकी बुद्धि शुद्ध हो जाती है,स्फटिक मणिवत हो जाती है,तब वो आत्मा,स्वयं को,आत्मा स्वयं ज्योर्तिभवती,तब आपकी बुद्धि में ज्योति के रूप में छा जाती है और सारे संसार में एक ज्योति के सिवाय कुछ नहीं।ज्योति क्या है,वो प्रकाश है,प्रकाश क्या है,वो ज्ञान है।ज्योति क्या है,वो ज्ञान है,आत्मा क्या है,वो ज्ञान है।ज्ञान जो है वही निराकार है और वही साकार है।और वही निर्गुण है,और वही सगुण है,ज्ञान।ज्ञान शक्ति है।
- जब निराकार है,तब मान कैसे गए वो निराकार है?जाना कैसे?
- नहीं वो निराकार है,ये प्रश्न है।जब निराकार कहा है,तब आकार नहीं है तब क्या है वो?वो है शक्ति,एनर्जी।शक्ति के कोई आकर है क्या?शक्ति कोई कार्य करती है क्या?आप अपने डिजायर से बुद्धि से,शक्ति का उपयोग दुरूपयोग करते है।हम शक्ति से कार्य(बुद्धी के द्वारा)कार्य करवाते हैं।आप अपनी बुद्धि से,शक्ति के द्वारा अपनी रचनाएं पूरी करते है।शक्ति का सदुपयोग दुरुपयोग आप करते है इसलिए शक्ति निराकार है।वो शक्ति है,ज्ञान।शक्ति के बिना तो पत्ता नहीं हिलता,आप पलक नहीं मार सकते।बताइये,ओत प्रोत है कि नहीं,ये शक्ति?(है गुरुजी)।ये शक्ति जो है,ये तो प्राण रहकर,जो कुछ शरीर में आपके कार्य करती है।आपका सहचर कौन है?प्राण है।वो क्या है?शक्ति है।
- शक्ति,ज्ञान,आत्मा,प्राण।चारों एक ही हैं,बस।
- दोष है,षट विकार भरा हुआ है,उस विकार युक्त बुद्धि से वो ज्ञान का(ज्ञान जो शक्ति है)का दुरूपयोग हो जाता है।ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं है।
- विषय उपभोग,रचना(सकाम कर्म सब) और निद्रा,समाधि स्थिति,जब तक ये लय नहीं होते,तब तक समाधि नहीं होते।वो ही सम्यक दर्शन।
- ये पूजा है,जो पुष्प चढ़ाया जाता है,ये चढ़ाया जाता है।
- समाधि योग से ही तुम्हारा अहंकार और संशय मिटता है और किसी से नहीं।न जन्म से ,योगियों का कुल है,औषधियों से औषिधि हमारे पास है।सिद्ध औषिधि है, ये सब झूठ बात है,सब अहंकार भरे है।अहंकार तुम्हारा दूर नहीं हो सकता।संशय और अहंकार दूर नहीं होता,बढ़ता है,क्योंकि औरों को वो टाइम देता है,और कहता है मैंने ये किया तुम्हारा।
- केवल समाधि बुद्धि जो है,जब तक आत्मा में समाहित नहीं हो जाती है,जब तक संशय दूर नहीं होता।तब तक वो साधारण मनुष्य है,चाहे कैसे ही विद्वान हो,कैसे ही मांत्रिक, तांत्रिक हो,कैसे ही हो।तब तक वो अधोगति को प्राप्त होता है।क्योंकि अहंकार है,मैं और मेरा,यही माया है।मैं और मोर तोर तैं माया, जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।
।।श्री गुरुजी।।