प्रवचन

ज्योति-प्रकाश पर्व ,दीपावली की शुभकामनाये –
आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवती !
ईश्वर का निराकार स्वरूप है, प्रकाश-ज्योति- नूर-Light !
भाषा भिन्न है पर वो है एक ही ! सम्पूर्ण चराचर इन्ही के प्रकाश से प्रकाशित -सुंदर -सुगन्धित है , चैतन्य है,समर्थ है !
—-नाम रूप भिन्न है ,पर सब में सर्वत्र ,घट-घट,विश्व के अणु-रेणु में व्याप्त है, इसलिए विष्णु भी कहते है !
—-यही महाशक्ति है, जिसे ईश्वर -परमात्मा- कुंडलिनी -सद्गुरु जो कहें । वह अनन्त कुंडल है उस शक्ति [कुंडलिनी]को खड़ी करना है,उसको जगाना है,उसी को सत कहा है।
—-मनुष्य जन्म का मूल चार उद्देश्य बताया गया है -1.धर्म 2. अर्थ 3. काम 4. मोक्ष ।

प्रथम मूल उद्देश्य धर्म =आत्म-ज्ञान प्राप्त करना ही मनुष्य जन्म का मूल धर्म है ।
इसकी प्राप्ति पर मनुष्य समर्थ , पूर्ण ज्ञानवान हो जाता है ,ऐसा कोई ज्ञान नही होता जो जानना शेष रह जाय ,ऐसा कुछ भी अप्राप्त नही होता ! इस स्थिति में वह जो भी कार्य करता है वह उत्कृष्ट होता है,जो उन्हे उत्कृष्ट धन प्रदान करता हैं !
चूंकि इस स्थिति को प्राप्त मनुष्य निष्काम होता है । आत्मन्येवात्मना तुष्ट:।वह अपने आप में संतुस्ट होता है ।

—–परन्तु उनसे जुड़े हुए लोग जिन्हे उनसे उपेक्षाएं होती हैं, उसे पूरा करना कर्तव्य होता हैं । वह ऋण है, जिससे उऋण होना होता है । अतः आत्मस्थ स्थिति में जिस क्षेत्र में कार्य करेंगे, उत्कृष्ट होगा । अतः धन की कोई कमी नही अर्थात धर्म से धन व धन से कामनायें पूर्ण अर्थात सबकी अपेक्षाएं पुर्ण , सब संतुस्ट , कोई ऋण नहीं, यही मुक्ति, मोक्ष है ।

—–तात्पर्य यह है कि मनुष्य शरीर की प्राप्ति दुर्लभ है, इसमें साधना हो सकती है, इसे भोग व संकीर्ण विचारों में व्यर्थ नस्ट न करें । परिवार समाज, राष्ट व विश्व के प्रति जो कर्तव्य है, उसे यथा सामर्थय करते हुए समय निकालकर हम साधना करें । जिससे हमारी बुद्धि निर्मल हो ।
हम विकारों से मुक्त हो, हमें सत्य का बोध हो, जिससे हम समर्थ होगें । हमारा कल्याण होगा व हम औरांे के कल्याण में भी सहायक होगें । यही मनुष्य जन्म का मूल उद्देश्य है, धर्म है ।

शास्त्र के प्रयोजन एवम उद्देश्य को अध्ययन व अभ्यास कर पहले स्वयं आचरण में लाये तत्पश्चात देश-देश ,गांव-गांव ,घर-घर जाकर अध्ययन व अभ्यास कराकर आचरित कराए उसे ही आचार्य कहां गया है ! यही मानव जन्म का मूल उद्देश्य है, धर्म है !

—-सत मत छाड़ो सुरिमा, सत छाड़े पत जाय।सत के बांधे लक्ष्मी फेर मिलेगी आय।।
इसके पीछे एक कहानी है,एक धनाढ्य सेठ,सत्य निष्ठ,वैभव सम्पन्न, व्यापारी था।लोगो के सुख दुःख की परवाह करता था।सेठ थक गया।लड़को ने व्यापार सम्भाला।अपनी औरत, बाल बच्चे व उनका सुख इतना ही उनके नजर में था।उन्होंने लोगो से पैसा निचोड़ना शुरू किया।लोग दुखी होकर बोलने लगे ,सेठ जी बड़े अच्छे थे,दानी भी थे,लेकिन उनके बच्चे बहुत लूटते है।

—-एक दिन ऐसा हुआ,भाग्य ने करवट ली बुरे दिन आ गये,व्यापार बैठ गया। मुनीम ने कहा -मैं जा रहा हूँ, ऐसा करते-करते सब नौकर चाकर, सहचारिया जो भी थे सब चले गये की ,हमको तनख्वाह मिलेगी नही,भूखे थोड़े ही मरेंगे।लड़के भी बाहर धंधा करने चले गये।

—-एक दिन एक आदमी आया और सेठजी को नमस्ते किया,सेठ जी से कहा मैं तुम्हारा पुण्य हूँ।क्या कहना है तुम्हारा-सेठ जी बोले।हमारा यहाँ अब कोई काम नही,सो हम जाते है,उस आदमी ने कहा।सेठ जी बोले-ठीक है भाई जाइये।इसके बाद इसी तरह परोपकार,शांति,दान सब चले गये।

—-शांति के बाद दूसरी महिला आती है,बड़ी सुंदर है,अलंकार आभूषणों से लदी हुई है,नमस्ते करके खड़ी रहती है।सेठ जी पूछे आप कौन है,वो जवाब देती है-मैं लक्ष्मी हूँ, मेंरे सहचर दान, पुण्य,परोपकार,शांति आदि सब चले गये,उनके सिवाय मैं रह नही सकती,अब मुझे भी जाने दीजिए, सेठ जी उन्हें भी हां कर देते है।

—-अब धीरे धीरे सब सूना होकर,उदासी छा जाती है,लक्ष्मी के जाने के बाद सब वैभव चला जाता है।जो सर झुकाते थे,वे आँख दिखाने लगते है।ऐसी स्थिति में एक दिन सत्य आये,वो जाने की आज्ञा चाहे,सेठ जी बोले -सब गया कोई परवाह नही,तुम नही जा सकते,तुम तो मेरा जीवन हो,तुम्हारे बिना मैं नही रह सकता।

—-सेठ जी सत्य को छोड़ने को तैय्यार नही होते,जैसे ही सत्य वहां बैठा, वैसे ही जो सब गये थे,सब वापस आ गये।

इसीलिए सत मत छाड़ो सुरिमा,सत छाड़े पत जाय,सत के बांधे लक्ष्मी ,फेर मिलेगी आय। धैर्य रखो,सत्यम वद,धर्मम् चर।धर्म माने आचरण।

।।श्री गुरूजी।।

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