हमारे में जो है विद्यमान,जिसके निकलने पर ये शरीर को जला दिया जाता है,वो क्या है?वो आप है,हम देह नहीं आत्मा है।सत माने एनर्जी,सत माने कॉस्मिक एनर्जी,सत माने डिवाइन एनर्जी।सत माने जिसकी ये सत्ता है।सत माने आत्मा।इसी सत्ता से सारी दुनिया खड़ी हुई है और साइंटिस्ट भी सब,उसी ओर जा रहे है।वो सत है।
—-जीवात्मा तभी तक है जब तक कि इन्द्रियों के वश में पड़ा हुआ है,परवशता माने इन्द्रियों में हम लगे हुए है।इंद्रियार्थ,इन्द्रिय और अर्थ।तो किसी में अर्थ और,ढूंढा जा रहा है।ये मेरा,ये मेरा,ये मेरा बस अपनी एक ही वृत्ति है,और कुछ भी नहीं है।
—-नर्क जाने के जो कुछ आपके साधन वासनाएँ,वो जब क्षीण हो जाते है,तब आप शुद्ध हो जाते है।वे वासनाएँ वे जो कर्म है,कर्म राशि नारकीय जो दुखी आत्मा होने के है,जब नाश होता है।कैसे नाश होता है,साधना से नाश होता है।आप देह नहीं आत्मा है।
—-ये कषाय पूर्ण निकल जाय माने काम क्रोध लोभ मान,राग द्वेष ये मेरा है ये मेरा नहीं है।ये मित्र है ये शत्रु है,भेद ऊंच नीच का,ये भ्रम जब दूर होता है।तो ये राग द्वेष की निवृत्ति से प्राप्त होने वाला स्वरूप,स्व माने स्वयं का रूप।स्व माने स्वतः।स्व माने प्रकृति।तो ये पद जो है-आत्मपद।ये परम् है।आत्मा ही परम है।इसे परमात्मा कहा गया है।वो साक्षी है,वो सबको देखता है,वो महान है।
—-अपरिवर्तनीय कौन सा पद है,वो ज्ञाता है,जिसको कॉस्मिक एनर्जी कहते है,डिवाइन एनर्जी कहते है,दिव्य कहते है,दिव्य शक्ति कहते है,वो ही महाशक्ति है।वहाँ पहुँचने पर,इसी शरीर में होता है,वो पद, वही परमपद है।तब जाकर वो स्थिर होता है।इसको चरित्र कहा।ब्रम्हचर्य माने ब्रम्हतत्व में जिसका मन बुद्धि लीन हो गया है, वो ब्रम्हचारी है।इस व्रत को हम ब्रम्हचर्य व्रत कहते है।
।।श्री गुरुजी।।