—-स्वयं को खोजना ही भक्ति है,ज्ञान है।ज्ञान में डुबकी लगाकर ही कुछ हासिल होता है।
—-आत्मा ही दैविक है,मन अत्यधिक शक्तिशाली हो जाता है।तथा सभी घटनाये वैसे ही घटती है,जैसे आप चाहते है।
—-किसी से द्वेष न हो न ममत्व,क्योंकि ये सब दिखाने के लिये है।
आप अकेले आये है और अकेले जायेंगे और जाना ही पड़ेगा।
—-अपना काम है सहन करना।उल्टा उसका हित शरीर,वाणी,मन से पहुँचाये।
—-अहम किस बात का जब तुम्हारी अगली स्वास् ही तुम्हारे वश में नही।
जिसे शरीर का ,धन,मान का भय हो उसे कभी आनन्द प्राप्त हो ही नही सकता।
—-आत्मा के साथ एकात्मता रखना सबसे बड़ा एवं प्रभावशाली भजन है।इसी क्रिया से अहंकार जाता है।
कर्तापन से दूर हुए की स्व,भाव स्वयं होने लगता है।
—-वस्तु बनी हुई है,वह हमी तो है।उसे वस्तु न समझकर आत्मा समझने पर उसका प्रभाव मन पर नही पड़ता है।
दृष्टा न रहा तो फिर दर्शन के रहने का प्रश्न ही नही रहा।ऐसा अभ्यास आपको करना है।
आपको गुण रहित होना है,चिंतन रहित स्थिति को प्राप्त करना है।
—-गुरु और ब्रम्ह में एकात्मता विकशित होना ही एकनिष्ठता है।
।।श्री गुरूजी।।