—-चित्त में कर्तापन का अभाव ही उत्तम समाधान है,वही आनंदमय परमपद है।
—-समस्त प्राणियों के भीतर जैसा भाव होता है,वैसा ही बाहर अनुभव होता है।
—-देह में अहं भावना करने से आत्मा दैहिक दुःखों के वशीभूत होता है,अहं भाव/देह भाव त्याग देने पर उस दुःख जाल से मुक्त हो जाता है।
।। योग वाशिष्ठ ।।
