- गुरु अर्थात सदगुरु ! सत मायने आत्मा , आत्मा परम है इसलिए परमात्मा कहते है , कुंडलनी , भगवान , ईश्वर भी कहते है , ये ही सदगुरु है ! जो सम्पूर्ण चराचर में शक्ति रूप में विद्यमान है ! वो निर्गुण निराकार ,प्रकाश- ज्योतिस्वरूप है ! कहा गया है ,आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवती ! अलाल्ह नूर है ! गॉड इस लाइट ! जो सर्वत्र ,कण -कण ,घट घट,सम्पूर्ण जगत ,विश्व के अणुरेणु में व्याप्त है व सबसे निकट हमारे भीतर है , हम उसी चेतना से चैतन्य है,प्रकाशित ,सुगन्धित ,सुंदर है !
- ये नक्श खयाली है , काबा हो के बुत खाना , मै तुझमे हूँ , तू मुझमे है ये जल्वये जाना ! जब सर को झुकाता हूँ,शीशा नजर आता है ! शाकी से मै कह दूंगा ये राज फ़कीराना —
- भगवान शिव ,श्री राम, हनुमानजी ,बुद्ध सभी साधक ,सिद्ध ,सुजान भगवान ,इन्ही गुरुवो का गुरु -आत्मा -राम [परमब्रह्म] का ध्यान आज्ञाचक्र में करते है ,इनके सामर्थ से ये व हम सब समर्थ है !
- बुध्धि का आत्म योग भीतर होता है ! ये आंतरिक प्रक्रिया है ,——–
- गुरु को सिर पर राखिये , चलिए आज्ञा माहि ! कहे कबीर ता दास को तीन लोक डर नाहि !
- [ सिर पर राखिये = स्मरण रखिये , चलिए आज्ञा माही=सुझबुझ लेकर कार्य करे ]
आत्म-साक्षात्कार के बाद मैदान में उतारो, कोई हाथ नहीं पकड़ता ! !!!!
- इसके बाद मनुष्य,ज्ञान और सामर्थ् में पूर्ण होता है, वो होनी को अनहोनी और अनहोनी को होनी करने में समर्थ होता है, अष्ट सिद्धि ,नव -निधि उन्हें प्राप्त होता है, श्राप और वरदान देने में समर्थ होता है, वह पूर्ण समर्थ ईश्वर का साक्षात सगुण रूप हो जाता है l
- ऐसा कोई पूर्ण समर्थ , पृथ्वी पर एक भी हो जाए , तो पूरे विश्व का उद्धार हो जाए , यथार्थ धर्म की पुनः स्थापना के साथ वास्तविक रामराज, पुनः सतयुग हो जाए l
- एक संत थे, उनके नाती उनसे कहते है कि बाबा मै अब बड़ा हो गया हूँ , संसार में कुछ करना चाहता हूँ ! इस पर संत नाती से कहते है कि नातू ,तू पहले अपने आप को जान फिर उतर मैदान !
- यहाँ संकेत है —-नातू = जो तू अपने को समझता है तू वो नही है ,अत: पहले अपने को जान अर्थात आत्म-ज्ञान प्राप्त कर उसके बाद काम का होगा तब तुझमे यथार्थ समझ ,सामर्थ-शक्ति होगी ,मन निर्मल होगा तब अपना व संसार के हित में कुछ कर पायेगा !
- !! श्री गुरुजी वासुदेव रामेश्वर जी तिवारी !!