- यह मानव शरीर ईश्वर की कृति का बेजोड़ नमूना है,जो बुद्धि और ज्ञान से सीमित है।वही आत्म-योग से परम स्थिति में पहुंचने पर असीम(अनंत,सर्वव्यापक)हो जाता है।
- खाली बोलते है भाई उसने सब पैदा किया,उसने सब पैदा किया,अरे उसने जब सब पैदा किया, तो वही तो है ये।ये आया कहाँ से?वही से तो आया है,वेदान्त में भी हम कई बार उलझ जाते है,उपनिषद जो है उसी से सब उत्पन्न हुआ दिव्य शक्ति जो है,दिव्य ज्योति से ये सब उत्पन्न हुआ ये सब दिव्य,लेकिन ये बहिर्मुख है,वो अन्तर्मुख बहिर्मुख माने हमारी इन्द्रियाँ ऐसी बना दी गई कि हम समझ नहीं पाते जान नहीं पाते।
- अपने आप को हम भूल गए हजारों जन्म बीत गये ,हजारों साल बीत गए,अपने आपको हमने पहचाना नहीं, जाना नहीं,अपना जो असली घर आत्मा है, परमात्मा, उसमें हम कभी पहुंचे नहीं,इन्द्रियों की तृप्ति के लिए केवल हम बाहर बाहर फिर रहे इसलिए हम समझ नहीं पाते है वही।जैसे जैसे आप अपने घर की ओर जाएंगे,आत्मस्थ होते जाएंगे।ये सारे बन्धन इन्द्रियों के सब शिथिल हो जाते है,ये दुर्गुण जो है सद्गुण में परिवर्तित हो जाते है,अभी तुम जीव हो वासना से दबे हुए हो,वासना से ग्रस्त हो अपना पराया ये सब जो है।
- यही जीव ईश्वर है, क्लेश कर्म विपाका अपरा विशिष्टतः पुरुष विशेषः,यही पुरुष जो है विशेष है।विशेष माने बन्धनों को क्लेशों को जो काट देता है,अविद्या अस्मिता राग द्वेष अभिनिवेश पंचक्लेश ये जो मिट जाता है अभ्यास से वही पुरुष वो विशेष पुरुष हो जाता है।अभी हम दोषों से भरे हुए है ,दोषी है हम,दोष से भरे हुए है दोषमुक्त तो हुए नहीं,दोष से मुक्त हो जाता है तो गुणयुक्त हो जाता है।तब वो युक्त हो जाता है वही तो है स्मरण करके वो,वही विषय स्नेक पॉइज़न,वही संश्लेषण करके शुद्ध कर देते है तो वही जो लकवा के भी काम आता है लकवा अच्छा हो जाता है,बायां अंग का लकवा जो तुंरन्त मालूम हो जाय तो तुंरन्त अच्छा हो जाता है और हुए है मेरे पास प्रमाण है90-90 साल के लोग अच्छे हुवे है।तो तात्पर्य यह है वही जो दोष जब वो निर्दोष हो जाता है तो सब गुण हो जाता है तो गुण विशेष जो है।और मनुष्य कुछ न कुछ चाहिए बिना चाहिए वो किसी के पास जाता नहीं।आपको चाह न हो डिमांड न हो तो किसी से बोलेंगे नहीं हां।ये जो वासना है ये वासना से दबे हुए है इसलिए हमारी सारी शक्तियां दोषयुक्त है और जीव जो है,अभ्यास करने के बाद जो गुण में परिवर्तन हो जाता है तो ये सब हो जाता है।कर्म का बाधा बनता नहीं और अनेक जन्मों का जो कुछ भी परिणाम है वो उदय होते नहीं,वही के वही नष्ट होते चले जाते है अपने सहस्त्रदल कमल में या सेरिब्रम में वे सब वही भूसे की तरह जल जाते है।तो ये पुरुष विशेष ईश्वर कहलाते है।तब वो सहायक होता है समाज के,इस तरह से राम को भी ईश्वर कहा कृष्ण को भी ईश्वर कहा,और साधु सन्तों तक को भी ईश्वर कहा,सद्गुरु को भी ईश्वर कहा।तो वो समाज का कार्य करता है,अहैतुकी इच्छा रहित होकर वो कार्य करता है न कोई अपेक्षा रखता है केवल अहैतुकी जो है उन्हीं को साधु कहा।
- वही जो है देव है देव वहां है क्या संकेत है?अब तुम सोचो न क्या समझ में आया,इसलिए आत्मदेव से बढ़कर कोई देव नहीं।
- ये गायत्री का निष्कर्ष है आगे जो मन्त्र है ॐ नाम्य है ॐ आत्मा का ही नाम है सगुण जो है नाव है इस नाव में बैठने परॐ ऐसा जब नाव है नाव,नौका इस ॐ में बैठ जाने पर पार हो जाता है।माने अखण्ड प्रवाह से अमोघ गति से अन्तररहित ध्यान करने से मनुष्य इस मल रूपी संसार से मल रूपी भण्डार से या मलरूपी आगार से वो निकल जाता है और समर्थ होकरके औरो को भी इस कीचड़ में से पंक में से निकाल देने में समर्थ होता है अपने जैसे वो और लोगों को तैयार करता है यही विज्ञान है।विज्ञान है आप उसको एनालिसिस नहीं कर सकते विश्लेषण नही कर सकते तो क्या काम का?क्या काम का कोई काम नहीं।तो ईश्वर ये भी मायोपाधि है खाली बोलते है।
।।श्री गुरुजी।।