संस्कृति

आज हमारी हालत ये है,अब हम अपने भी नहीं रह गये, अपने तक तो ठीक है,अब हम अपने भी नहीं रह गये,अब हम कहीं के नहीं रह गये।अनेक दुर्देव,दुर्गति,अनेक ग्रास जो फैले हुए है,और हम चले जा रहे है।उठो जागो।और श्रेष्ठ व्यक्ति को प्राप्त करके,आप जब तक उनकी तरह नहीं हो जाते,महाशक्ति को प्राप्त नहीं कर लेते।तब तक आप उनके सानिध्य में रहे।नहीं तो जहां तहां देखो,व्यक्ति कट रहा है,वो अपना पेट भी नहीं भर सकता,न समाज में उसका कोई भरोसा करता है।प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक व्यक्ति से क्या होता है-चौकता है।बाप हमारा नहीं तो बेटा बाप का कहाँ हो सकता है,भाई भाई का नहीं,बहिन बहिन नहीं,हम अपने आप में संदेह है।व्यक्ति अपने आप से गया।पुरातन संस्कृति और आज के संस्कृति में..,इसको वापस लाना है और ये प्रत्येक घटक का काम है।प्रत्येक व्यक्ति का काम है।
।।श्री गुरुजी।।

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