या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:!!
-अर्थात हे दिव्य शक्ति [Divine Energy] जो सभी भूतो [चराचर प्राणी] में शक्ति रूप में संस्थिता अर्थात समान रूप से स्थित है,उस दिव्य शक्ति को मै नमन करता हूँ!
–जिसकी चेतना से हम सब, अखिल ब्रम्हांड ,सम्पूर्ण चराचर चैतन्य है, प्रकाशित है ,सुगन्धित है ,सुंदर है ,संचालित है ,जीवंत है का ही स्मरण- ध्यान स्वयं ब्रम्हा जी ,भगवान विष्णु , महादेव शंकरजी , भगवान श्री राम , हनुमान जी , भगवान बुद्ध व सभी साधक ,सिध्द, सुजान ,भगवान करते है, जिसके कारण सब शक्तिसम्पन्न ,समर्थ है जो सब का ईश्वर है ! इसे ही आत्मा ,परमात्मा ,ईश्वर ,भगवान् . महाशक्ति ,कुंडलनी आदि-आदि कहते है ,यही सद्गुरु है सत=आत्मा गुरु अर्थात सद्गुरु है ! ये सबसे निकट आत्मरूप में हमारे भीतर अंतरात्मा ही है !वो ज्योतिस्वरूप है ,आत्मा स्वयम ज्योतिर्भवति ! अल्लाह नूर है। God is light lइनका ही दर्शन अर्थात साक्षात्कार करना है ये ही कारक है ! और बाहर जितने मन्दिर ,मस्जिद .गुरु द्वारा गिरिजाघर व ज्योति दर्शन जो है वो स्मारक है अर्थात कारक [ईश्वर] का स्मरण दिलाने वाला ! कारक [ईश्वर]जो कण -कण में सर्वत्र ,घट-घट में व्याप्त है जो सबसे निकट हमारे भीतर आत्मरूप [शक्तिरूप ]में विद्यमान है जो सबका ईश्वर है —का मै नमन करता हूँ , शरण लेता हूँ ,वह ईश्वर ही है मै नही !
सर्वं खल्विदं ब्रह्मम्”=सर्वत्र-सभी ब्रह्म ही है”-समग्र सृष्टि, समस्त जड़ चेतन,दृष्ट अदृश्य जगत ब्रह्म है !
सोहं *=वही मैं हूँ।
तत्त्वमसि=तुम भी वही हो,
अर्थात – वही आप हैं ,वही वे हैं, वही हम सभी हैं।