जब आत्मा सर्वज्ञ है सर्वत्र है सर्वशक्तिमान है तो फिर चिंता क्या है?चिंता किस बात की?
मनुष्य एक ब्रम्हांड है उसमें आत्मा और बुद्धि का संयोग है।प्रकृति विराट रूप है ईश्वर का।ईश्वर दुनियाँ में नाना नहीं है वह एक ही है।दिव्य शक्ति सबमें ओत प्रोत है,वह आपमें ही है।
अपने आपको पढ़िये आप कहाँ चूके है कहाँ नहीं?ज्ञानी वह जो आत्मज्ञान से सम्पन्न हो गया।इसको धारण करने से सामाजिक कल्याण का मार्ग अपने आप प्रशस्त होता चला जाता है।जो अपने आप से विमुख है वह सबसे विमुख है।
हम सब उस आत्मा के अंदर है न तपस्या करना पड़ता है न त्याग।यही उत्तम सहजावस्था है।
विचारों को जैसे ही उठे उसके मूल स्रोत पर नष्ट कर देना अनासक्ति है।जो केवल अपने परिवार की ही चिंता करता है वह रजोगुणी है।मैं चाहता हूँ, गुरुमय वातावरण हो मैं गुरुजन तैय्यार करता हूँ शिष्य नहीं।इसलिए मैंने परिवार शब्द रखा है।
।।श्री गुरुजी।।
