



सभी कहते है की आप में आत्मा है,लेकिन वह प्रभाव है क्या?क्या ये सारी शक्तियाँ अष्टसिद्धि,नवनिधि आदि आपमें विकसित है क्या?आत्मशक्ति आपमें विकसित है क्या?
—-इसलिये मैं क्यों,क्या,कैसे नही पूछता।आज भी मैं सत्य के खोज में हूँ।
—-आत्मा या कुण्डिलिनी- शक्तिस्वरूपिणी है,वही परमब्रम्ह है।
जो अपना मोक्ष चाहता है,संसार में आनन्द से अपना जीवन व्यतीत करना चाहता है।वह उसकी शरण ले।मैं उसकी शरण लिया हूँ।
वह कुछ पर विशेष कृपा कर सकता है।जैसे राजा किसी को दे,या पूर्ण दान कर दे।उस सत्ता रूपी दरबार से वह करता है।
उसी प्रकार वह महाशक्ति जैसा चाहे कर सकता है।
—-मैं कौन हूँ?कब तक हूँ?कैसा हूँ?कितना करना है?कितना नही करना है?अपने अधिकार से आप बाहर न जाये और न करे।ये ज्ञान अगर बना रहे तो आनन्द है इसमें।
मुझे तो व्यवहार कुशल रहना है।मैं सिखाता हूँ और सीखते जाता हूँ।
सतगुरु(आत्मा) को जानने के बाद जीवन से मुक्ति मिल जाती है।
—-सतगुरु के वचनों को आचरण में लाना अति-आवश्यक है।केवल वचनों को ही तो श्रद्धा,भक्ति,तन,मन सबके साथ,आचरण में लाना है।
अन्यथा हम कुछ नहीं कर सकते।
—-मैं वही कहूँगा जो कहने योग्य है।वही करूँगा जो करने योग्य है।
आप लोगोँ को भी ऐसा करना चाहिए या नही।ये आप लोग सोचें,हर व्यक्ति स्वतन्त्र है।
मैं किसी को रोकता नहीं,कोई निषेध नहीं है।
—-शक्ति का विश्लेषण करके जो पाया जाता है,उसको रखने के लीये न्यूकुलश के रूप में सशक्त होना चाहिए।वरना वह बिखर जायेगा, चला जायेगा।
—-मनुष्य कृतार्थ तभी होता है,जब सत्पुरुष के बताये हुए मार्ग का अनुसरण करके और उस तरह अभ्यासरत-साधनारत होता है।
।।श्री गुरूजी।।