स्थिरता

अपने सहित सर्वत्र घट-घट ,कण -कण ,सबमें सर्वत्र ब्रम्ह का दर्शन-

सर्वं खल्विदं ब्रह्मम्”=सर्वत्र-सभी ब्रह्म ही है”-समग्र सृष्टि, समस्त जड़ चेतन,दृष्ट अदृश्य जगत ब्रह्म है !
सोहं *=वही मैं हूँ।
तत्त्वमसि=तुम भी वही हो,

वही आप हैं वही वे हैं वही हम सभी हैं।

एक क्षण भी अहम् ब्रह्मास्मि के बिना ना बीते ।
—-शांतावस्था में अभय होकर कार्य करते है,उसकी कोई इच्छा नहीं रहती ।
शक्ति का विश्लेषण करके जो पाया जाता है,उसको रखने के लिए न्यूकुलश के रूप में सशक्त होना चाहिए।वरना वह बिखर जायेगा, चला जायेगा ।
—-शब्द ब्रम्ह है क्योंकि हमारे अंदर ध्वनि आत्मा से निकलती है।वर्तमान में यह विज्ञान भी मानता है कि आवाज या ध्वनि समाप्त नहीं होती,इसकी तरंग दैर्ध्य कम अवश्य हो जाती है,जिसे हम सुन नहीं पाते है,उचित व्यवस्था की जाय तो पहले की ध्वनि को हम सुन सकते है,इसलिए अंततः शब्द ब्रम्ह है।
—-जल्दी में उत्तर न दो सुनो शब्दों को तौलो,सोच समझकर उत्तर दो,उसका रंग अपने ऊपर न चढ़े इसका ध्यान रहे।
—-जिससे आपको असहनीय परेशानी हो उसे त्याग दे,परन्तु यह बात है त्यागना या कष्ट भोगना आपको ही है।जैसे आपको काँटा चुभ गया हो तो काँटा निकाल दीजिये।
—-व्यवहारमय भाषा का उपयोग अपने आचरण में अनुकरणीय बनाना चाहिए।
जो गुरुजी के सेवक है उसकी तरफ कोई आंख उठाकर भी नहीं देख सकता।
—-हमेशा वर्तमान में रहो संतोषी बनो।भौतिकता बौद्धिकता मानसिकता नैतिकता से पूर्ण हो जाओगे,तुम्हीं महान हो।
—-परावलम्बी का अर्थ है देहरुचि,मनुष्य को स्वालम्बी बनकर रहना चाहिए।
—-समस्या बोले तो कुत्ते की दुम और उसका इलाज है फुलस्टाप।फुलस्टाप लगाने का तरीका है,धीरे धीरे व्यवहार कम करते जाना।
—-इच्छा क्या है?व्यवहार में ऐसा रहना,ऐसा होना है,इसे निश्चित करे, ऐसा करने से मनुष्य और फिर समूचा समाज सुखी रहेगा।
—-किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए डटकर बलपूर्वक तैय्यार रहना चाहिए, भोग भोगने से कटता है।परिस्थितियां जैसे भी सामने आती है,वो कटने के लिए आती है,वो बने रहने या काटने के लिए नहीं आती।
कोई भी प्रसंग हो उसको सहन करने की शक्ति होनी चाहिए,क्रोध भी नहीं करना चाहिए,बदला भी नहीं लेना चाहिए।वह आता है करके चला जाता है हम ज्यों के त्यों है,ऐसा समझ के रहे तो आनन्द आ जायेगा,और जो आता है वह कटने के लिए आता है,और हम काटने के लिए तैय्यार है,अंडर दैट पॉवर तो जो आएगा,सब कटता चला जायेगा।
—-एक ध्येय होना चाहिए, ऐसा ध्येय होना कि कभी भी हमारा कल्याण हो और हमको देख करके औरो का भी कल्याण हो।
सिद्धान्त ऐसा होना चाहिए कि सबका कल्याण हो,हम कुटुम्ब में समाज में आदर्श रहे,हमको देखकर लोग उसको पढ़े,कुछ सीखे और करे।
।।श्रीगुरुजी।।

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