ढाई अक्षर प्रेम का या तीन पद से युक्त ऐसा शब्द।

जिसे गायत्री कहा गया।
जिसका आकार बना दिया गया।
जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है।

पद जो होता है,उसका कोई नाम नहीं।

ॐ को ही कहा गया।

वो आत्मदेव है।

जो अपने में स्थित है।स्थिर है।

स्वयं ज्योति है।सूर्य का वर्ण है।स्वर्ण जैसा।

वही हमारे अंदर-बाहर,ऊपर-नीचे है।और हम उसके अंदर है।

सूर्य माने ज्योति।माने ज्ञान।

आत्मज्ञान होने पर क्या होगा?

नाना-जन्मों में वासना के द्वारा,किये गए कर्मों से सुख-दुःख का फल।जो हम जन्मों-जन्मों से भोगते चले आ रहे हैं।और आगे भी भोगते चले जायेंगे।

को भस्म कर देने वाला।

आत्मा रूपी सूर्य प्रकट होगा।तो क्या नहीं हो सकता?

वो जैसा बोलेगा,वैसा होगा।

वो चलेगा तो दुनिया चलेगी।

वो जैसा चाहेगा,वैसा होता जायेगा।

केवल संकल्प मात्र से कार्य होते रहते हैं।
।।श्री गुरुजी।।

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