
1,तरुणाई में होत है योग भोग उद्योग,यही सत्य है।
2,आनन्द मंगल हो,सबका भला हो,हानि कभी न हो किसी की,न अपमान हो न निरादर हो,हम बस यही चाहते है।जिसको जो व्यवहार,व्यापार है,उसका सुख दुख वैसा है।
3,अभ्यास करते करते जब कुन्डलिनी शक्ति जग जाती है तो इतनी उष्णता बढ़ जाती है कि आग लग गई शरीर में ऐसा अनुभव होता है,बोध होता है।
4,चाहे धूप हो गर्म हो,हवा कुछ भी हो उसके सामने कुछ भी नहीं लगेगा,निकल जाती है,शांत हो जाती है।
5,जब वो जाग जाती है जो सप्त धातु है उसको चाट जाती है,अर्थ है नाना जन्मों के किये गये वासना द्वारा कर्म राशि-जो सुख दुख का भोग है,शरीर में जो इन्द्रियाँ है मन बुद्धि और विषय से विषाक्त होकर इन्द्रियाँ जो दूषित हो गई है,बार बार उस ओर आती जाती है,तो शक्ति जगने के बाद ये स्थिति जब आती है,शरीर का शोधन हो जाता है।
4,सब दोषों को निगल जाती है खा जाती है।विष माने व्यापक,विष्णु माने सर्वव्यापक।गरल माने विष।पहले गरल उगलती है,उसके बाद उस गरल से सब संशोधन(सब खा जाती है दोषों को)होता है।
15,जब वो जगती है,(उस जगह से फूटती है) जब खड़ी होती है तो सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त हो जाती है,याने क्या होता है फैल जाती है,एक एक सेल में एक एक कोष में वो घूम जाती है घूमकर जितने मल है दोष है जलाकर भस्म कर देती है।माने अपने विष से उन सबको/दोषों को साफ कर देती है।बाहर में जो विषय,इन्द्रियों में जो आदत है दूषित जन्म जन्म के संस्कार जो है,उन सबको चाट लेती है दूर कर देती है।
6,तब प्रसन्न हो करके ऊपर जाकर खड़ी हो जाती है,लकड़ी पड़ी है सूखी वैसा पड़ा रहता है,सत्व शुद्ध/पवित्र हो जाता है।तब खजाना जो है सहस्त्रदल/सेरिब्रम/दसवी खिड़की/ब्रम्हरंध्र/इंट्रावेंट्रिकुलर फोरमेन ऑफ मोनरो/आनन्दमयकोष/सत्यलोक कहा वहां जाके सीट/घर बनाती है।नाना प्रकार की शक्तियां जो भरी पड़ी है वो सारी अपने आप काम करने लगती है।
7,जो विषय हमारा है वो सारे विषय को दूर करके,अपने विषयों को न्यूट्रल कर देती है।बाह्य संवेदना शून्यत्व है बाहर वो रहता ही नहीं कहीं,शरीर है या नहीं ये बोध नहीं रहता।
8,जगने के बाद वो क्षुब्ध होती है,क्योंकि वो स्वयं ज्ञान/कुन्डलिनी शक्ति है,जो अनेक जन्मों की वासनाओ से दबते दबते इतना दब गया है कि वो ज्ञान/आत्मज्ञान हमारे पास रह नहीं गया,खाली विषयज्ञान/अज्ञान मात्र हमारे पास है।
9,ये वो शरीर में वो आग है जो बुझ जाती है-ये ज्ञान है।क्षुब्धि माने क्या-ये अज्ञान जो हमारे मन बुद्धि चित्त अहं सारी इन्द्रियाँ जो दूषित हो चुकी है,जो मल है दुख है पाप है दोष है जो आप नाम दे पर्याय में उन सबको निर्मल कर देती है उससे वो पवित्र हो जाता है।
10,ये जलन क्या चीज है?हमारे वृक्क/किडनी/उपवृक्क जो है(ये) दो ग्रंथियाँ और है उसके पास थोड़ी सी ऊपर,उपवृक्क का नाभि से सम्बन्ध है,उसमें एक द्रव्य है जो दाह उत्पन्न करता है,उसको मणिपुर/अग्नितत्व/ कहा गया है,तात्पर्य यह है एड्रेनल स,जो ग्लैंड्स है हमारे वो सीक्रेट करते है।
11,अभ्यास करने पर सारे अवययों पर प्रभाव पड़ता है/ सूझबूझ देता है/ निकल जाते है/सोई शक्ति जग जाती है।माने ज्ञान की भूख हजारों जन्मों से दबी हुई,अज्ञान के मल से दबी हुई-जब वो खड़ी हो जाती है तो अंधेरा मल सब चाट जाती है,रास्ता बना कर ऊपर चली जाती है,असली रूप में आ जाती है,ज्योतिर्मय पिंड में पहुंच जाती है/एक छिद्र में ब्रम्हरन्ध्र में,सारे शरीर में कोष कोष में रोम रोम में रम जाती है,सर्वव्यापिका हो जाती है।
12,ये चीज विज्ञान है,सुषुम्ना माने(वो कहाँ है मुझे मालूम है)वहां जाने पर होता है,ये सब।केनाल के अंदर जो लाइनिंग है वही सुषुम्ना है।वो दुखी कुन्डलिनी शक्ति जब जगती है ज्ञान की भूखी रहती है सारे अज्ञान को दूर करके स्वयं का ज्ञान/ज्ञानमय मंडल या जिसके अंदर जा करके वो जो स्वयं ज्ञान है वो ज्ञान प्राप्त होता है/सारा ब्रम्हांड ज्योति से भर जाता है।फिर क्या होता है-उसका उपयोग समाज के लिए हो जाता है।स्वयं पवित्र हो करके समाज का दुख दूर हो जाता है।
।।श्रीगुरुजी।।