
—-अभ्यास, निष्काम कर्म धर्म रूप बन जाये,तो वह ऐसा व्यसनी हो जाता है कि रात और दिन बगैर बोले चाले उसके मुँह से हरे राम हरे कृष्ण निकलते रहता है।वो कार्य करता रहता है तो भी निकलते रहता है,सब काम करते वो होते रहता है।वो उसका धर्म बन जाता है,माने निश्चल अटल हो जाता है।
—-आत्मा से भिन्न अनात्म पदार्थों का चिंतन न करना मन का मौन है।असत्य अप्रिय क्रोधमय अभिमान युक्त लोभमय,न बोलना-वचनमौन कहलाता है।
3,शरीर से अध्यात्म भाव की ओर अग्रसर होना,तन का मौन है।
4,जब आपने सब दे दिया तो मेरा तेरा कहाँ रह गया,ये तो दीवार डालना है फिर से?मेरा होता नहीं,मुझे कुछ मिलता नहीं,ऐसा कहा तो शरण कहाँ?
—-ध्यान से हमारी बुद्धि शुद्ध हो जाती है,जो हमारे विषय है बाहर चले जाते है हम निर्विषय हो जाते है।
—-तत्व तो वह है जिसकी प्रतीति हो,इसकी तो प्रतीति नहीं बोध होता है,वह सत्य है।
—-स्त्री या पुरुष बाहरी रचना है,भीतर एक आत्मा के सिवा क्या है?
—-जो पहले से नहीं थे,आज वो आ नहीं सकता,दुनिया में पहले से हुआ,वही आज भी है।
—-इन आँखों पर,मन पर,सारे शरीर पर,अधिकार है,दिल को बिगाड़ने से बिगड़ता है आदमी,जिसने इसे सम्भाल लिया वो सम्भल गया।
—-खुद बिगड़े हुए है,दूसरे का नाम लेते है।
—-सत्य के सिवाय कुछ नहीं है मेरे पास,मेरे पास अनुभूति है,सत्य है।
—-हम शुद्ध है,सारी दुनिया शुद्ध है,मेरे मुँह से कभी आप निंदा नहीं सुनते है।वही मेरे में है,वही सब में है।
—-यहां हम सब एक है,और भेद नहीं फिर भेद कैसे आ गया भाई?व्यवहार में भेद है,लेकिन बोध में अभेद है।
।।श्रीगुरुजी।।