आत्म-साक्षात्कार
आत्म-साक्षात्कार के बाद मैदान में उतारो, कोई हाथ नहीं पकड़ता !
कुलं पवित्रं जननी कृतार्था, वसुन्धरा पुण्यवती च तेन ।
अपारसंवित्सुखसागरेऽस्मिन् , लीनं परे ब्रह्मणि यस्य चेत: ॥
इसके बाद मनुष्य, पूर्णत: निर्विकार, ज्ञान और सामर्थ् में पूर्ण होता है, वो होनी को अनहोनी और अनहोनी को होनी करने में समर्थ होता है, अष्ट सिद्धि, नव -निधि उन्हें प्राप्त होता है, श्राप और वरदान देने में समर्थ होता है, वह पूर्ण समर्थ ज्ञान-वान, ईश्वर का साक्षात सगुण रूप हो जाता है ।
ऐसा कोई पूर्ण समर्थ , पृथ्वी पर एक भी हो जाए, तो पूरे विश्व का उद्धार हो जाए, यथार्थ धर्म की पुनः स्थापना के साथ वास्तविक रामराज, पुनः सतयुग हो जाए ।
एक संत थे, उनके नाती उनसे कहते है कि बाबा मै अब बड़ा हो गया हूँ , संसार में कुछ करना चाहता हूँ ! इस पर संत नाती से कहते है कि नातू , तू पहले अपने आप को जान फिर उतर मैदान ! यहाँ संकेत है नातू = जो तू अपने को समझता है तू वो नही है, अत: पहले अपने को जान अर्थात आत्म-ज्ञान प्राप्त कर उसके बाद काम का होगा तब तुझमे यथार्थ समझ, सामर्थ-शक्ति होगी, मन निर्मल-निर्विकार होगा तब अपना व संसार के हित में कुछ कर पायेगा !
श्री गुरुजी वासुदेव रामेश्वर जी तिवारी