
परहित सरिस धर्म नहीं भाई—
—-दूसरों को हित पहुचाओ,दुसरो के हित में ही अपना हित है,फिर क्या है,त्याग है,ये हो नही सकता,वो समय नही है कोई साथ नही देगा ।
दूसरा है ज्ञेय, क्या जान लेने पर कुछ जानना शेष न रहे ?वो क्या है?वो है आत्मा,आत्मशक्ति को कुण्डलिनी शक्ति को जानने के लिये जो उपाय है,वो आपको मालूम होना चाहिये,वोअगर मालूम हो जाये तो फिर दूसरी चीज जानने की जरूरत नही है,क्योकि वो पर ब्रम्हस्वरूपिणी है । आप महान हो जायेंगे ,योगी हो जायेंगे ।
आज आप तप करने लग जायेंगे,तो आपका शरीर पात हो जायेगा,कलि में अन्न न मिले तो आप जीवित नही रहेंगे,ना ना,ना ना,समझ लो मैं क्या कह रहा हु मैं?मेरे कई जन्म बीत चुके है, हमारा जन्म सिद्ध है
क्या मिल जाने पर दूसरा कुछ मिलना शेष न रहे ? सत्पुरुष मिलने पर,सत याने आत्मा ,जो पहले था,अभी भी है,आगे भी रहेगा ।अंदर बाहर सब जगह,ओत प्रोत है,लेकिन बिना सत्पुरुष के वो आँख खोलना बहुत कठिन है,पहले भूमिका दृढ़ करनी पड़ती है ।
कौन सा कर्म करने पर दूसरा कुछ करना शेष न रहे ?
वो है,निष्काम कर्म ,जो आत्म साक्षात्कार हेतु किया जाता है,आपका अभ्यास इतना दृढ़ होना चाहिये ,इतना तगड़ा होना चाहिये की वो अखंड रूप धारण कर ले,पर एक दिन की बात नही है सतत दीर्घकाल तक अनेको जन्मों के बाद करते हुए आती है ।
जब अखंड रूप से नाम स्मरण करेंगे ,अभ्यास करेंगे तो धीरे धीरे अखंड रूप धारण करने के बाद वो होगा निष्काम कर्म,अब कोई दूसरा कार्य करने की आवश्यकता नही,फिर न कोई देवी,न देवता,न ही कोई महाशक्ति ,इस शक्ति से बढ़कर ,कोई शक्ति नही है।ये तीसरी आँख खुल जाती है,आत्मा ज्योति स्वरूप प्राप्त होती है,यही आत्म,साक्षत्कार है ।
।श्री गुरूजी।