परमपद

—-आज एक व्यक्ति दूसरे पर भरोसा विश्वास नहीं करता।इससे घर-घर में ,व्यक्ति-व्यक्ति में फूट है।हमारी जो शक्ति है,राजविद्या है,उसे हम भूल गए है,यही कारण है।
—-आज क्या है,ऊपर से नीचे तक एक ही चीज मिलती है,वो है दुर्गति।ये तभी जा सकती है,जब प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को जानें, समझें तब चरित्र का निर्माण होता है।
—-वरना चरित्र एक पुस्तकीय नाम है,चरित्र का अर्थ है,धर्मम् चर सत्यम् वद।सत्य बोलो,धर्म से चलो।धर्म माने आत्मा,आत्मधर्म- आचरण।सत्य आचरण है,सत्य को नहीं छोड़ना है।ये सत्य परमपद है।
आत्म साक्षात्कार यही धर्म है आपका,तब वो धर्मात्मा होता है।तो उस सत् वस्तु को न छोडो,बाकी सब कुछ छोडो और सत् को पाओ।सत् है आत्मा।वो महाशक्ति है।
—-औरों को भी अपने जैसे तैय्यार कर सकते है।आचरण में लाओ तब अपना।समाज का राष्ट्र का तरण तारण होता है।
इस प्रकार आत्मयोग,योग से ही चरित्र निर्माण होता है,नई शक्ति मिलती है,नया उत्साह मिलता है।अपना कल्याण और राष्ट का कल्याण,समस्त विश्व का कल्याण सम्भव है।ऐसा मेरा मत है।
।।श्री गुरूजी।।

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