स्वतः ही अभ्यास हो जाए

—-आपका ध्यान प्रक्रिया,साधन शैली जो गुरूजी ने दिया है वह बिलकुल आत्मसात हो जाना चाहिए।
जैसा समय आये,हमे अपना काम भी करते जाना है और इस प्रकार से अभ्यास भी करना चाहिए की बगैर स्मरण किये वह ध्यान बन जाना चाहिए।
—-कोयला है,आग है,उस पर राख मत पड़ने दो,कम से कम बीच बीच में उसको साफ़ करो।आत्मा रूपी अग्नि में जो राख रूपी वासना पड़ गई है,उसे बीच बीच में फूको।
—-जहाँ नार्यस्तु अर्थात कुण्डलिनी की, महाशक्ति की पूजा होती है,वहाँ सब देवता रहते है।
अर्थात कुण्डलिनी के जागृति पर ही देवदुर्लभ स्थिति की प्राप्ति होती है।

।।श्री गुरूजी।।

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