
—-ये अहम(मैं, कर्तापन का भाव) भोगवाता है अनेक जन्म में जाता है।जब तक एक भी संस्कार बाकी है,उसे जन्म लेना पड़ेगा भोगने के लिए।वासनाओं का बीज अहम है।वासना पुण्य पाप का बीज है।वासना रूपी पेड़ को अनासक्ति रूपी कुठार से काट डालो।
—-अहम भाव जब समाप्त होता है,तब निर्बीज समाधि होती है।यह निर्वाण है।वान माने शरीर(नि-नाहि)।उसका शरीर, ज्योतिर्मयशरीर होता है।
—-मुक्ति पाने के लिए,कर्म में अनासक्त होकर निरत रहो।
क्रिया मन व देह करते है।सदा प्रत्यक्ष करते रहो कि तुम कुछ नही करते।गुरु अर्पण करो।
।।श्री गुरुजी।।