आत्मा

मैं तत्व की बात बोलता हूँ, वो है आत्मा,वो है आप।आप देह नही है।
आत्मा जो शब्द है,आ से आनन्द शब्द की उत्पत्ति है,और मकार से त्रिगुण दूर ,वही उत्पत्ती, स्थिति,लय्।
ये वही चीज है,जिस पद को प्राप्त करना है,उसका नाम है परम्,परमपद।
भारत,भा के रूप में ज्ञान होता है,प्रकाश होता है,नक्षत्र होता है।बोध होता है,वो कौन सा ज्ञान है ?आत्मज्ञान।आत्मा का दर्शन होता है,आत्मसाक्षात्कार होता है।
मिला है बहुत लोगो को मिला है।रत माने लगे रहना,जिसके निकलने पर ये शरीर को जला दिया जाता है,वो क्या है?वो आप है,हम देह नही आत्मा है।
पृथ्वी के अंदर,बाहर सब जगह प्रकाश है,सूर्य के प्रकाश से यह अलग है।
तो आत्म ज्ञान में लगे रहना।
,भारत में यही एक विद्या है,जिससे सारे जगत में उत्तम कोई विद्या नही।
श्रीकृष्ण ने इसको राजविद्या,और
विवेकानंद ने राजयोग कहा है।
ये विद्या हमने छोड़ दी है,इस ओर हम झुकने को तैय्यार नही
,करने को तैय्यार नही,अरे थोडा बहुत तो चलो आगे,एक- एक बूंद से घड़ा भरता है।
।।श्री गुरूजी ।।

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