बिंदु
—-उसे फिर से यह शरीर प्राप्त नहीं होता है,शरीर प्राप्त होता है।लेकिन ज्योर्तिमय पिंड है,उसका शरीर ज्योर्तिमय हो जाता है।—-रूप तो खोल मात्र है,अंदर वही है,और मैं ही वही हूँ।स्वरूप चिन्तन के इसी भाव में मगन रहते है।ज्ञानियों का यही भाव है,यही ज्ञान है।—-एक सेल से आप,अनेक सेल में देह पाये है।अब आकुंचन के द्वारा …