Sahajawastha
सहजावस्था जो समस्त जगत को ब्रह्म-मय देखता है, उसके लिए ध्यान करने न करने, बोलने न बोलने अथवा करने न करने को क्या शेष रह जाता है !।।आदि शंकराचार्य।। [यही सहजावस्था है ]सहज -सहज सब कोई कहे, सहज न चिन्हे कोय आठो प्रहर भीनी रहे सहज कहावय सोय उत्तमा सहजावस्था, मध्यमा ध्यान -धारणा, मंत्रजपस्यात अधमा, …