वर्तमान क्षण में जियो

ॐ असतो मा सद्गमय।तमसो मा ज्योतिर्गमय।मृत्योर्मामृतं गमय ॥ हम प्रत्येक दिन को नव वर्ष-नव जन्म वरात्रि निद्रा को मृत्यु माने lएक-एक दिन-क्षण का पूर्ण सदुपयोग करें–—विचार करके देखे तो अधिकतर मनुष्य एक दिन ,एक क्षण नहीं जीता ! या तो भूत में घटित घटनाओ में या भविष्य के कल्पनाओ में या औरो [ अन्य पदार्थ …

आत्मा

मैं तत्व की बात बोलता हूँ, वो है आत्मा,वो है आप।आप देह नही है।आत्मा जो शब्द है,आ से आनन्द शब्द की उत्पत्ति है,और मकार से त्रिगुण दूर ,वही उत्पत्ती, स्थिति,लय्।ये वही चीज है,जिस पद को प्राप्त करना है,उसका नाम है परम्,परमपद।भारत,भा के रूप में ज्ञान होता है,प्रकाश होता है,नक्षत्र होता है।बोध होता है,वो कौन सा …

सर्वं इश्वरम्

हम बताये मार्ग में चलने के बजाय मार्ग बताने वाले को पकड़ लेते है मंजिल इसीलिए नही मिलती !—————जिनका ध्यान स्वयं ब्रह्मा जी ,भगवान विष्णु , महादेव शंकरजी , भगवान श्री राम , हनुमान जी , भगवान बुद्ध व सभी साधक ,सिध्द, सुजान ,भगवान करते है , जो सम्पूर्ण सचराचर में शक्तिरूप में विदमान है, …

योग वसिष्ठ

—-चित्त में कर्तापन का अभाव ही उत्तम समाधान है,वही आनंदमय परमपद है।—-समस्त प्राणियों के भीतर जैसा भाव होता है,वैसा ही बाहर अनुभव होता है।—-देह में अहं भावना करने से आत्मा दैहिक दुःखों के वशीभूत होता है,अहं भाव/देह भाव त्याग देने पर उस दुःख जाल से मुक्त हो जाता है।।। योग वाशिष्ठ ।।

निराकार

निर्गुण सगुण होकर साकार होता है।साकार-सा+आकार।सा=वह।वह शक्ति जो कार्य करती है।कार, कुरु(धातु)से बना है।कार><कारि=कार्य।निर्गुण होते हुए वह गुणयुक्त है।जब निर्गुण है,जब गुण नही,तब क्या है?निराकार है।फिर वह क्या है?वह शक्ति है।क्योंकि शक्ति निराकार होती है।उसका कोई रूप(आकार)नहीं है।तब ये रचना कैसी ?वह ,शक्ति से सगुण है।स=वह।गुण=गुण।गुण ही शक्ति है।उदाहरणार्थ-जब तक साधक अध्ययनरत होता है तब …

आत्मोद्धार

जहाँ से हम आये है,वही हमे जानना है,वही कर्तव्य है और यही धर्म है ।जब तक तुम्हे आत्मा सर्वज्ञ है,पर भरोसा नही होगा, जब तक तुम अपने आत्मा पर भरोसा नही करोगे,तब तक तुम मारे मारे फिरोगे,कुछ भी हाथ में नही आयेगा, चाहे तुम कितना ही सेक्रिफाइस करो,कितना ही बाटो, स्वर्ग नर्क के सिवाय छुटकारा …

सर्वशक्तिमान

जब आत्मा सर्वज्ञ है सर्वत्र है सर्वशक्तिमान है तो फिर चिंता क्या है?चिंता किस बात की?मनुष्य एक ब्रम्हांड है उसमें आत्मा और बुद्धि का संयोग है।प्रकृति विराट रूप है ईश्वर का।ईश्वर दुनियाँ में नाना नहीं है वह एक ही है।दिव्य शक्ति सबमें ओत प्रोत है,वह आपमें ही है।अपने आपको पढ़िये आप कहाँ चूके है कहाँ …

विद्या

यह मानव शरीर ईश्वर की कृति का बेजोड़ नमूना है,जो बुद्धि और ज्ञान से सीमित है।वही आत्म-योग से परम स्थिति में पहुंचने पर असीम(अनंत,सर्वव्यापक)हो जाता है। खाली बोलते है भाई उसने सब पैदा किया,उसने सब पैदा किया,अरे उसने जब सब पैदा किया, तो वही तो है ये।ये आया कहाँ से?वही से तो आया है,वेदान्त में …

निर्विकार

हमारे अंधकार को मिटाकर जो हमें प्रकाश में ला दे,ज्ञान करा दे,बोध करा दे,आत्मबोध करा दे- उसको सतगुरु कहते है। एक सत् के सिवाय और कुछ नहीं है,ये ही सत है।आत्मा ही सत् है।तत्सत उसी का नाम ऊं है। आप अपनी कुंडलिनी याने आत्म शक्ति को जगाइये।आप शक्तिमान बनें, ज्ञानी बनें।इसलिए बार बार जन्म मिलता …

विष्णु ,

ईश्वर जो सर्वत्र ,कण- कण ,घट -घट में विश्व के अणु रेणु में व्याप्त है इसलिए विष्णु भी कहते है , जो सबसे निकट हमारे भीतर शक्ति रूप में वही [अंतरात्मा ]ही है ,जिसकी चेतना से हम चैतन्य -समर्थ -संचालित -सुंदर -सुगन्धित है ! जिसे ईश्वर ,भगवान ,वाहेगुरु ,अलाल्ह ,गॉड आदि-आदि विभिन्न नामो से पुकारते …