श्रीराम का धर्मरथ (The Dharma Chariot of Shri Ram)

🏹 विजय दशमी — स्मरण व नमन धर्म रथ जिससे जय-विजय होती है, सफलता मिलती है — श्री राम । दिव्य स्मरण • विजय हिन्दी English 1 रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥ भावार्थ: रावण को रथ पर और श्री रघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। प्रेम अधिक होने …

सद्गुरू-ब्रह्म-ईश्वर (Satguru, Brahman, and God)

Satguru, Brahman, and God 🔸 ईश्वर !! नाम, रूप, देश, काल से परे हैं अर्थात सभी नाम, रूप, स्थान और समय पर समान रूप से व्याप्त हैं। वो असीम-अनंत-अनादि है। संपूर्ण सचराचर में, विश्व के अणु-रेणु में व्याप्त है, इसलिए विष्णु भी कहते हैं। God is beyond name, form, place, and time — equally present …

या देवी सर्वभूतेषु (Ya Devi Sarvabhuteshu)

या देवी सर्वभूतेषु — हिन्दी / English या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता !नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !! हिन्दी English अर्थात हे दिव्य शक्ति (Divine Energy) जो सभी भूतो (चराचर प्राणी) में शक्ति रूप में संस्थिता अर्थात समान रूप से स्थित है, उस दिव्य शक्ति को मैं नमन करता हूँ! जिसकी चेतना से हम सब …

The Divine Force Within All (सर्वत्र दिव्य शक्ति)

कुंडलिनी महाप्रोक्ता पर, ब्रह्मस्वरूपिणी।शब्द ब्रह्ममयी देवी, एकानेकाक्षराकृत ।। हिन्दी / English हिन्दी English ये जितने भी पेड़‑पौधे, घास‑फूस, जीव‑जानवर, मानव‑दानव आपको दिखते हैं उन सभी में वो दिव्य शक्ति है। वो दिव्य शक्ति है। वो सबमें ओतप्रोत है। उसे कोई आत्मा कहे, कोई God कहे, कोई ईश्वर कहे, कोई अल्लाह कहे भगवान कहे, जिसका जो …

Path Toward Truth (सत्य की ओर पथ)

The Path Toward Truth – Shri Guruji Quotes 🔸 जो असली भक्त है – वे ज्ञान और भक्ति के ऐश्वर्य में मस्त रहता है। पांडवों को देखो, कितने एवं कैसे संकट उठाये, पर कृष्ण में उनका विश्वास तिल मात्र भी कम न हुआ। A true devotee is absorbed in the bliss of knowledge and devotion. …

वर्तमान क्षण में जियो

ॐ असतो मा सद्गमय।तमसो मा ज्योतिर्गमय।मृत्योर्मामृतं गमय ॥ हम प्रत्येक दिन को नव वर्ष-नव जन्म वरात्रि निद्रा को मृत्यु माने lएक-एक दिन-क्षण का पूर्ण सदुपयोग करें–—विचार करके देखे तो अधिकतर मनुष्य एक दिन ,एक क्षण नहीं जीता ! या तो भूत में घटित घटनाओ में या भविष्य के कल्पनाओ में या औरो [ अन्य पदार्थ …

आत्मा

मैं तत्व की बात बोलता हूँ, वो है आत्मा,वो है आप।आप देह नही है।आत्मा जो शब्द है,आ से आनन्द शब्द की उत्पत्ति है,और मकार से त्रिगुण दूर ,वही उत्पत्ती, स्थिति,लय्।ये वही चीज है,जिस पद को प्राप्त करना है,उसका नाम है परम्,परमपद।भारत,भा के रूप में ज्ञान होता है,प्रकाश होता है,नक्षत्र होता है।बोध होता है,वो कौन सा …

सर्वं इश्वरम्

हम बताये मार्ग में चलने के बजाय मार्ग बताने वाले को पकड़ लेते है मंजिल इसीलिए नही मिलती !—————जिनका ध्यान स्वयं ब्रह्मा जी ,भगवान विष्णु , महादेव शंकरजी , भगवान श्री राम , हनुमान जी , भगवान बुद्ध व सभी साधक ,सिध्द, सुजान ,भगवान करते है , जो सम्पूर्ण सचराचर में शक्तिरूप में विदमान है, …

योग वसिष्ठ

—-चित्त में कर्तापन का अभाव ही उत्तम समाधान है,वही आनंदमय परमपद है।—-समस्त प्राणियों के भीतर जैसा भाव होता है,वैसा ही बाहर अनुभव होता है।—-देह में अहं भावना करने से आत्मा दैहिक दुःखों के वशीभूत होता है,अहं भाव/देह भाव त्याग देने पर उस दुःख जाल से मुक्त हो जाता है।।। योग वाशिष्ठ ।।

निराकार

निर्गुण सगुण होकर साकार होता है।साकार-सा+आकार।सा=वह।वह शक्ति जो कार्य करती है।कार, कुरु(धातु)से बना है।कार><कारि=कार्य।निर्गुण होते हुए वह गुणयुक्त है।जब निर्गुण है,जब गुण नही,तब क्या है?निराकार है।फिर वह क्या है?वह शक्ति है।क्योंकि शक्ति निराकार होती है।उसका कोई रूप(आकार)नहीं है।तब ये रचना कैसी ?वह ,शक्ति से सगुण है।स=वह।गुण=गुण।गुण ही शक्ति है।उदाहरणार्थ-जब तक साधक अध्ययनरत होता है तब …