आत्मोद्धार

जहाँ से हम आये है,वही हमे जानना है,वही कर्तव्य है और यही धर्म है ।जब तक तुम्हे आत्मा सर्वज्ञ है,पर भरोसा नही होगा, जब तक तुम अपने आत्मा पर भरोसा नही करोगे,तब तक तुम मारे मारे फिरोगे,कुछ भी हाथ में नही आयेगा, चाहे तुम कितना ही सेक्रिफाइस करो,कितना ही बाटो, स्वर्ग नर्क के सिवाय छुटकारा …

सर्वशक्तिमान

जब आत्मा सर्वज्ञ है सर्वत्र है सर्वशक्तिमान है तो फिर चिंता क्या है?चिंता किस बात की?मनुष्य एक ब्रम्हांड है उसमें आत्मा और बुद्धि का संयोग है।प्रकृति विराट रूप है ईश्वर का।ईश्वर दुनियाँ में नाना नहीं है वह एक ही है।दिव्य शक्ति सबमें ओत प्रोत है,वह आपमें ही है।अपने आपको पढ़िये आप कहाँ चूके है कहाँ …

विद्या

यह मानव शरीर ईश्वर की कृति का बेजोड़ नमूना है,जो बुद्धि और ज्ञान से सीमित है।वही आत्म-योग से परम स्थिति में पहुंचने पर असीम(अनंत,सर्वव्यापक)हो जाता है। खाली बोलते है भाई उसने सब पैदा किया,उसने सब पैदा किया,अरे उसने जब सब पैदा किया, तो वही तो है ये।ये आया कहाँ से?वही से तो आया है,वेदान्त में …

निर्विकार

हमारे अंधकार को मिटाकर जो हमें प्रकाश में ला दे,ज्ञान करा दे,बोध करा दे,आत्मबोध करा दे- उसको सतगुरु कहते है। एक सत् के सिवाय और कुछ नहीं है,ये ही सत है।आत्मा ही सत् है।तत्सत उसी का नाम ऊं है। आप अपनी कुंडलिनी याने आत्म शक्ति को जगाइये।आप शक्तिमान बनें, ज्ञानी बनें।इसलिए बार बार जन्म मिलता …

विष्णु ,

ईश्वर जो सर्वत्र ,कण- कण ,घट -घट में विश्व के अणु रेणु में व्याप्त है इसलिए विष्णु भी कहते है , जो सबसे निकट हमारे भीतर शक्ति रूप में वही [अंतरात्मा ]ही है ,जिसकी चेतना से हम चैतन्य -समर्थ -संचालित -सुंदर -सुगन्धित है ! जिसे ईश्वर ,भगवान ,वाहेगुरु ,अलाल्ह ,गॉड आदि-आदि विभिन्न नामो से पुकारते …

वचन

गुरु अर्थात सदगुरु ! सत मायने आत्मा , आत्मा परम है इसलिए परमात्मा कहते है , कुंडलनी , भगवान , ईश्वर भी कहते है , ये ही सदगुरु है ! जो सम्पूर्ण चराचर में शक्ति रूप में विद्यमान है ! वो निर्गुण निराकार ,प्रकाश- ज्योतिस्वरूप है ! कहा गया है ,आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवती ! अलाल्ह …

दिव्य शक्ति

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता | नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: || अर्थात हे दिव्य शक्ति [Divine Energy] जो सभी भूतो [चराचर प्राणी] में शक्ति रूप में संस्थिता अर्थात समान रूप से स्थित है, उस दिव्य शक्ति को मै नमन करता हूँ ! जिसकी चेतना से हम सब, अखिल ब्रम्हांड ,सम्पूर्ण चराचर चैतन्य है, प्रकाशित …

चिन्तन

—-मुझे आत्मदर्शन नही हुआ,यह सब भ्रांतिपूर्ण बातें है,आत्मा ही तो तुम हो, आत्मा से ही सब कार्य हो रहा है,तुमको खाली अपना विकार रूपी कचरा साफ़ करना है।कचरा साफ़ करने के बाद आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवती।—-जब शांत हुऐ, शब्द सुनाई पड़ने लगेंगे।आकाश तत्व के विकार है-काम,क्रोध,लोभ,मोह,भय।मौन होने पर विकार नष्ट होंगे।भविष्य में क्या होने वाला है,गुरुवाणी,गुरु …

अद्भुत रस

हमारा जो पद है,वो आत्मा है।जो हमारे भीतर है,वह सूर्य की तरह प्रकाशित है।अनन्त सूर्यों का सूर्य है।वो तुम्हारा आधार है,उसे स्मरण करके कार्य करना चाहिये।वही सत्ता है और कुछ नहीं। सब में वही आत्मा है,इसलिए जब हम देखें तो सबमें वही आत्मा ( परम आत्मा ) को देखें।वो दिखे या न दिखे पर उसे …