वचन

गुरु अर्थात सदगुरु ! सत मायने आत्मा , आत्मा परम है इसलिए परमात्मा कहते है , कुंडलनी , भगवान , ईश्वर भी कहते है , ये ही सदगुरु है ! जो सम्पूर्ण चराचर में शक्ति रूप में विद्यमान है ! वो निर्गुण निराकार ,प्रकाश- ज्योतिस्वरूप है ! कहा गया है ,आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवती ! अलाल्ह …

दिव्य शक्ति

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता | नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: || अर्थात हे दिव्य शक्ति [Divine Energy] जो सभी भूतो [चराचर प्राणी] में शक्ति रूप में संस्थिता अर्थात समान रूप से स्थित है, उस दिव्य शक्ति को मै नमन करता हूँ ! जिसकी चेतना से हम सब, अखिल ब्रम्हांड ,सम्पूर्ण चराचर चैतन्य है, प्रकाशित …

चिन्तन

—-मुझे आत्मदर्शन नही हुआ,यह सब भ्रांतिपूर्ण बातें है,आत्मा ही तो तुम हो, आत्मा से ही सब कार्य हो रहा है,तुमको खाली अपना विकार रूपी कचरा साफ़ करना है।कचरा साफ़ करने के बाद आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवती।—-जब शांत हुऐ, शब्द सुनाई पड़ने लगेंगे।आकाश तत्व के विकार है-काम,क्रोध,लोभ,मोह,भय।मौन होने पर विकार नष्ट होंगे।भविष्य में क्या होने वाला है,गुरुवाणी,गुरु …

अद्भुत रस

हमारा जो पद है,वो आत्मा है।जो हमारे भीतर है,वह सूर्य की तरह प्रकाशित है।अनन्त सूर्यों का सूर्य है।वो तुम्हारा आधार है,उसे स्मरण करके कार्य करना चाहिये।वही सत्ता है और कुछ नहीं। सब में वही आत्मा है,इसलिए जब हम देखें तो सबमें वही आत्मा ( परम आत्मा ) को देखें।वो दिखे या न दिखे पर उसे …

प्रकृति

बिना सब तरफ से मन को समेटे ईश दर्शन नहीं होता।वासना दूर होते ही परमात्मा दिखाई पड़ता है।जब साधक की सभी विचार तरंगें मन में समा जायें, तब वह शक्तियुक्त हो जाता है। बाहर के संस्कार अशान्ति उत्पन्न करते है,इन संस्कारों को एक एक करके हवन कर देना है।वृत्तियों के क्षीण होने पर विकार नष्ट …

भक्ति

—-स्वयं को खोजना ही भक्ति है,ज्ञान है।ज्ञान में डुबकी लगाकर ही कुछ हासिल होता है।—-आत्मा ही दैविक है,मन अत्यधिक शक्तिशाली हो जाता है।तथा सभी घटनाये वैसे ही घटती है,जैसे आप चाहते है।—-किसी से द्वेष न हो न ममत्व,क्योंकि ये सब दिखाने के लिये है।आप अकेले आये है और अकेले जायेंगे और जाना ही पड़ेगा।—-अपना काम …

निर्गुण

1,अगर वो डर गया।आगे प्रोसेस नहीं होने दिया,तो लौट जाता है, वापस नीचे आ जाता है।बहुत से साधक,ये मरण के भय से क्या?ये सब लौटे जाते है।क्योंकि ये मरण जो है, ये दो मिनट के लिए हो सकता है,एक सेकंड के लिए हो सकता है,एक वर्ष के लिए भी हो सकता है। सारा जीवन उसी …

।। ध्यान ।।

दीक्षा के समय गुरु शिष्य के अन्तर में प्रविष्ट होकर अंतर्यामी रूप से शब्द ब्रम्हमय ज्ञान का दान करता ह गुरूजी के चरणों को लक्ष्य में रखना ,ध्यान करते करते मणिवत ,स्फटिक मणि के समान दसो नख हो जाते है,तब ग्रंथि,संशय दूर हो जाते है। स्व का अध्ययन ही ध्यान है।उस परमतत्व की ओर जहाँ …