अद्भुत रस

हमारा जो पद है,वो आत्मा है।जो हमारे भीतर है,वह सूर्य की तरह प्रकाशित है।अनन्त सूर्यों का सूर्य है।वो तुम्हारा आधार है,उसे स्मरण करके कार्य करना चाहिये।वही सत्ता है और कुछ नहीं। सब में वही आत्मा है,इसलिए जब हम देखें तो सबमें वही आत्मा ( परम आत्मा ) को देखें।वो दिखे या न दिखे पर उसे …

प्रकृति

बिना सब तरफ से मन को समेटे ईश दर्शन नहीं होता।वासना दूर होते ही परमात्मा दिखाई पड़ता है।जब साधक की सभी विचार तरंगें मन में समा जायें, तब वह शक्तियुक्त हो जाता है। बाहर के संस्कार अशान्ति उत्पन्न करते है,इन संस्कारों को एक एक करके हवन कर देना है।वृत्तियों के क्षीण होने पर विकार नष्ट …

भक्ति

—-स्वयं को खोजना ही भक्ति है,ज्ञान है।ज्ञान में डुबकी लगाकर ही कुछ हासिल होता है।—-आत्मा ही दैविक है,मन अत्यधिक शक्तिशाली हो जाता है।तथा सभी घटनाये वैसे ही घटती है,जैसे आप चाहते है।—-किसी से द्वेष न हो न ममत्व,क्योंकि ये सब दिखाने के लिये है।आप अकेले आये है और अकेले जायेंगे और जाना ही पड़ेगा।—-अपना काम …

निर्गुण

1,अगर वो डर गया।आगे प्रोसेस नहीं होने दिया,तो लौट जाता है, वापस नीचे आ जाता है।बहुत से साधक,ये मरण के भय से क्या?ये सब लौटे जाते है।क्योंकि ये मरण जो है, ये दो मिनट के लिए हो सकता है,एक सेकंड के लिए हो सकता है,एक वर्ष के लिए भी हो सकता है। सारा जीवन उसी …

।। ध्यान ।।

दीक्षा के समय गुरु शिष्य के अन्तर में प्रविष्ट होकर अंतर्यामी रूप से शब्द ब्रम्हमय ज्ञान का दान करता ह गुरूजी के चरणों को लक्ष्य में रखना ,ध्यान करते करते मणिवत ,स्फटिक मणि के समान दसो नख हो जाते है,तब ग्रंथि,संशय दूर हो जाते है। स्व का अध्ययन ही ध्यान है।उस परमतत्व की ओर जहाँ …

संस्कृति

आज हमारी हालत ये है,अब हम अपने भी नहीं रह गये, अपने तक तो ठीक है,अब हम अपने भी नहीं रह गये,अब हम कहीं के नहीं रह गये।अनेक दुर्देव,दुर्गति,अनेक ग्रास जो फैले हुए है,और हम चले जा रहे है।उठो जागो।और श्रेष्ठ व्यक्ति को प्राप्त करके,आप जब तक उनकी तरह नहीं हो जाते,महाशक्ति को प्राप्त नहीं …

संस्कृति

आज हमारी हालत ये है,अब हम अपने भी नहीं रह गये, अपने तक तो ठीक है,अब हम अपने भी नहीं रह गये,अब हम कहीं के नहीं रह गये।अनेक दुर्देव,दुर्गति,अनेक ग्रास जो फैले हुए है,और हम चले जा रहे है।उठो जागो।और श्रेष्ठ व्यक्ति को प्राप्त करके,आप जब तक उनकी तरह नहीं हो जाते,महाशक्ति को प्राप्त नहीं …

जन्मतः सब शुद्र

प्रत्येक व्यक्ति चाहे किसी आश्रम में हो,चाहे किसी भी वर्ग या वर्ण का हो-जन्मतः सब शुद्र है।—-जनेऊँ संस्कार/उपनयन संस्कार जब कर दिया जाता है-द्विज/दूसरा जन्म, होता है।—-वेदों के अध्ययन के पश्चात अभ्यास हो जाता है,तब वो-विप्र होता है।—-ब्राह्म जो परम आत्मा हो जाता है,तब उसको -ब्राह्मण कहा गया है।वो चाहे कोई भी हो।—-अभ्यास,अध्ययन के बाद …

ब्रम्हचर्य

हमारे में जो है विद्यमान,जिसके निकलने पर ये शरीर को जला दिया जाता है,वो क्या है?वो आप है,हम देह नहीं आत्मा है।सत माने एनर्जी,सत माने कॉस्मिक एनर्जी,सत माने डिवाइन एनर्जी।सत माने जिसकी ये सत्ता है।सत माने आत्मा।इसी सत्ता से सारी दुनिया खड़ी हुई है और साइंटिस्ट भी सब,उसी ओर जा रहे है।वो सत है। —-जीवात्मा …