संस्कृति

आज हमारी हालत ये है,अब हम अपने भी नहीं रह गये, अपने तक तो ठीक है,अब हम अपने भी नहीं रह गये,अब हम कहीं के नहीं रह गये।अनेक दुर्देव,दुर्गति,अनेक ग्रास जो फैले हुए है,और हम चले जा रहे है।उठो जागो।और श्रेष्ठ व्यक्ति को प्राप्त करके,आप जब तक उनकी तरह नहीं हो जाते,महाशक्ति को प्राप्त नहीं …

संस्कृति

आज हमारी हालत ये है,अब हम अपने भी नहीं रह गये, अपने तक तो ठीक है,अब हम अपने भी नहीं रह गये,अब हम कहीं के नहीं रह गये।अनेक दुर्देव,दुर्गति,अनेक ग्रास जो फैले हुए है,और हम चले जा रहे है।उठो जागो।और श्रेष्ठ व्यक्ति को प्राप्त करके,आप जब तक उनकी तरह नहीं हो जाते,महाशक्ति को प्राप्त नहीं …

जन्मतः सब शुद्र

प्रत्येक व्यक्ति चाहे किसी आश्रम में हो,चाहे किसी भी वर्ग या वर्ण का हो-जन्मतः सब शुद्र है।—-जनेऊँ संस्कार/उपनयन संस्कार जब कर दिया जाता है-द्विज/दूसरा जन्म, होता है।—-वेदों के अध्ययन के पश्चात अभ्यास हो जाता है,तब वो-विप्र होता है।—-ब्राह्म जो परम आत्मा हो जाता है,तब उसको -ब्राह्मण कहा गया है।वो चाहे कोई भी हो।—-अभ्यास,अध्ययन के बाद …

ब्रम्हचर्य

हमारे में जो है विद्यमान,जिसके निकलने पर ये शरीर को जला दिया जाता है,वो क्या है?वो आप है,हम देह नहीं आत्मा है।सत माने एनर्जी,सत माने कॉस्मिक एनर्जी,सत माने डिवाइन एनर्जी।सत माने जिसकी ये सत्ता है।सत माने आत्मा।इसी सत्ता से सारी दुनिया खड़ी हुई है और साइंटिस्ट भी सब,उसी ओर जा रहे है।वो सत है। —-जीवात्मा …

ब्रम्हचर्य

हमारे में जो है विद्यमान,जिसके निकलने पर ये शरीर को जला दिया जाता है,वो क्या है?वो आप है,हम देह नहीं आत्मा है।सत माने एनर्जी,सत माने कॉस्मिक एनर्जी,सत माने डिवाइन एनर्जी।सत माने जिसकी ये सत्ता है।सत माने आत्मा।इसी सत्ता से सारी दुनिया खड़ी हुई है और साइंटिस्ट भी सब,उसी ओर जा रहे है।वो सत है। —-जीवात्मा …

डेस्टिनी

—-बाहर के आकर्षण से ही सब कृतियाँ होती रहती है,अंतिम स्वास पर्यन्त कोई भी उसका भरोसा नहीं करता कि वो कब बदल जाएगा।शरीर के नौ द्वारों से हम बाहर के संस्कार लेते है और उस ओर खिंचते चले जाते है। मनुष्य के मूल संस्कार इतने जबरे है कि वो जानता है कि ये अच्छा नहीं,फिर …

विश्वास

वेदांत में भी घुसने पर भी साधुओं के वर्ग है।तीन केंद्र तक तो मायावी केंद्र है, भू, भुर्व, स्वः ये तीनों माया है।ये रावण, कुंभकरण,कंस आदि ये यही तक रहें। उसके बाद फिर वो अवधूत होता है जैसे दत्तात्रेय आदि।उसके बाद वो ऊपर चले जाये तो क्या कहते है, उसको,फिर संत होते है।तरण तारण मृत्यु …

विश्वास

वेदांत में भी घुसने पर भी साधुओं के वर्ग है।तीन केंद्र तक तो मायावी केंद्र है, भू, भुर्व, स्वः ये तीनों माया है।ये रावण, कुंभकरण,कंस आदि ये यही तक रहें। उसके बाद फिर वो अवधूत होता है जैसे दत्तात्रेय आदि।उसके बाद वो ऊपर चले जाये तो क्या कहते है, उसको,फिर संत होते है।तरण तारण मृत्यु …

धर्म

1.कर्म करना धर्म है ! पर कौन सा कर्म ?कर्तव्य कर्म अर्थात करने योग्य कर्म और वह है-निष्काम कर्म !आत्म साक्षात्कार [आत्मज्ञान प्राप्ति ] हेतु किया हुवा कर्म ही निष्काम कर्म है ,बाकी सब सकाम कर्म है !सांसारिक निर्वाह के लिए जो कर्म किया जाता है उसे उपजीविका कहते है ! व आत्म साक्षात्कार [आत्मज्ञान …

धर्म

1.कर्म करना धर्म है ! पर कौन सा कर्म ?कर्तव्य कर्म अर्थात करने योग्य कर्म और वह है-निष्काम कर्म !आत्म साक्षात्कार [आत्मज्ञान प्राप्ति ] हेतु किया हुवा कर्म ही निष्काम कर्म है ,बाकी सब सकाम कर्म है !सांसारिक निर्वाह के लिए जो कर्म किया जाता है उसे उपजीविका कहते है ! व आत्म साक्षात्कार [आत्मज्ञान …