त्यागी

एको अपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधाभृतेन तुल्यः दशाश्वमेधि पुनरेति जन्म कृष्णा प्रणामी न पुनर्भवाय !!अर्थात् -एक बार भगवान् कृष्ण को सही धारणा से प्रणाम [स्मरण] कर लिया तो उसकी तुलना दस अश्वमेध यज्ञ करने वाले से भी नहीं हो सकता है ! किन्तु इन दस अश्वमेध यज्ञ करने वाला का मुक्ति नहीं होता अर्थात् पुनर्जन्म …

एक ही साधे सब सधै

आध्यात्म -आत्मज्ञान और विज्ञान अलग-अलग नही है ! आत्मज्ञान, विज्ञान की पूर्णता है ,चरम है ! इसे जानने के बाद कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता ,कुछ भी अप्राप्त नहीं होता !इसे ही वेदांत कहते हैं .वेद=ज्ञान !वेदांत अर्थात् ज्ञान का अंत ,जहां ज्ञान का सीमा समाप्त हो जाय ,ऐसा कोई ज्ञान नहीं जो …

प्रवचन

ज्योति-प्रकाश पर्व ,दीपावली की शुभकामनाये –आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवती !ईश्वर का निराकार स्वरूप है, प्रकाश-ज्योति- नूर-Light !भाषा भिन्न है पर वो है एक ही ! सम्पूर्ण चराचर इन्ही के प्रकाश से प्रकाशित -सुंदर -सुगन्धित है , चैतन्य है,समर्थ है !—-नाम रूप भिन्न है ,पर सब में सर्वत्र ,घट-घट,विश्व के अणु-रेणु में व्याप्त है, इसलिए विष्णु भी …

प्रवचन

ज्योति-प्रकाश पर्व ,दीपावली की शुभकामनाएं –आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवति !ईश्वर का निराकार स्वरूप है, प्रकाश-ज्योति- नूर-Light !भाषा भिन्न है पर वो है एक ही ! सम्पूर्ण चराचर इन्हीं के प्रकाश से प्रकाशित -सुंदर -सुगन्धित है , चैतन्य है, समर्थ है !—-नाम रूप भिन्न है ,पर सब में सर्वत्र ,घट-घट, विश्व के अणु-रेणु में व्याप्त है, इसलिए …

एकत्व

भक्त भक्ति भगवंत गुरु चतुर नाम बपु एक। इनके पद बंदन किए नासहिं बिघ्न अनेक॥ भगवान् श्री राम हनुमान जी से पूछते है-हे हनुमान ,मुझमे और तुझमे क्याअंतर है? हनुमान जी कहते है -प्रभु लौकिक दृष्टी से आप स्वामी मै सेवक, आप भगवान मै भक्त हूँ ! और तात्विक दृष्टी से जो आप है वही …

एकत्व

भक्त भक्ति भगवंत गुरु चतुर नाम बपु एक। इनके पद बंदन किए नासहिं बिघ्न अनेक॥ भगवान् श्री राम हनुमान जी से पूछते हैं-हे हनुमान ,मुझमें और तुझमें क्या अंतर है? हनुमान जी कहते हैं -प्रभु! लौकिक दृष्टी से आप स्वामी, मैं सेवक, आप भगवान मैं भक्त हूँ ! और तात्विक दृष्टी से जो आप हैं …

निर्लिप्तता

[श्रीकृष्ण[गीता ] व श्री सद्गुरुजी के प्रवचन पर आधारित ]- 1.मन का बाहर किसी [ व्यक्ति या पदार्थ ] में लिप्तता या लगाव, किसी प्रकार का भी आदत जिसके न मिलने पर मन अशांत,बेचैन होता हो ,यही मन का विकार ग्रस्त [बीमार] होना है ! अर्थात मनोरोग है ! 2.स्वस्थ वही है जो आत्मस्थ है …

सर्वं खल्विदं ब्रह्मम्

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:!! -अर्थात हे दिव्य शक्ति [Divine Energy] जो सभी भूतो [चराचर प्राणी] में शक्ति रूप में संस्थिता अर्थात समान रूप से स्थित है,उस दिव्य शक्ति को मै नमन करता हूँ! –जिसकी चेतना से हम सब, अखिल ब्रम्हांड ,सम्पूर्ण चराचर चैतन्य है, प्रकाशित है ,सुगन्धित है …

सर्वं खल्विदं ब्रह्मम्

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:!! -अर्थात हे दिव्य शक्ति [Divine Energy] जो सभी भूतो [चराचर प्राणी] में शक्ति रूप में संस्थिता अर्थात समान रूप से स्थित है,उस दिव्य शक्ति को मै नमन करता हूँ! –जिसकी चेतना से हम सब, अखिल ब्रम्हांड ,सम्पूर्ण चराचर चैतन्य है, प्रकाशित है ,सुगन्धित है …

अभ्यास

—-ये जो बीज [दीक्षा ] दिया गया है,ब्रम्ह विद्या दी गई है, धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए,उपरामता को प्राप्त कर ,धैर्ययुक्त बुद्धि से मन को परमात्मा-अंतरात्मा में स्थिर करते हुए,दूसरे विचारों को मन में न आने दो ,इससे सारे क्लेश,कर्म,विपाक ये सब साफ होते जाते है।—मेरी ही प्रीति बनी रहे/रहेगी।दृश्य या ध्वनि होते हुए भी मन-बुद्धि …