ब्रम्हचर्य

हमारे में जो है विद्यमान,जिसके निकलने पर ये शरीर को जला दिया जाता है,वो क्या है?वो आप है,हम देह नहीं आत्मा है।सत माने एनर्जी,सत माने कॉस्मिक एनर्जी,सत माने डिवाइन एनर्जी।सत माने जिसकी ये सत्ता है।सत माने आत्मा।इसी सत्ता से सारी दुनिया खड़ी हुई है और साइंटिस्ट भी सब,उसी ओर जा रहे है।वो सत है। —-जीवात्मा …

डेस्टिनी

—-बाहर के आकर्षण से ही सब कृतियाँ होती रहती है,अंतिम स्वास पर्यन्त कोई भी उसका भरोसा नहीं करता कि वो कब बदल जाएगा।शरीर के नौ द्वारों से हम बाहर के संस्कार लेते है और उस ओर खिंचते चले जाते है। मनुष्य के मूल संस्कार इतने जबरे है कि वो जानता है कि ये अच्छा नहीं,फिर …

विश्वास

वेदांत में भी घुसने पर भी साधुओं के वर्ग है।तीन केंद्र तक तो मायावी केंद्र है, भू, भुर्व, स्वः ये तीनों माया है।ये रावण, कुंभकरण,कंस आदि ये यही तक रहें। उसके बाद फिर वो अवधूत होता है जैसे दत्तात्रेय आदि।उसके बाद वो ऊपर चले जाये तो क्या कहते है, उसको,फिर संत होते है।तरण तारण मृत्यु …

विश्वास

वेदांत में भी घुसने पर भी साधुओं के वर्ग है।तीन केंद्र तक तो मायावी केंद्र है, भू, भुर्व, स्वः ये तीनों माया है।ये रावण, कुंभकरण,कंस आदि ये यही तक रहें। उसके बाद फिर वो अवधूत होता है जैसे दत्तात्रेय आदि।उसके बाद वो ऊपर चले जाये तो क्या कहते है, उसको,फिर संत होते है।तरण तारण मृत्यु …

धर्म

1.कर्म करना धर्म है ! पर कौन सा कर्म ?कर्तव्य कर्म अर्थात करने योग्य कर्म और वह है-निष्काम कर्म !आत्म साक्षात्कार [आत्मज्ञान प्राप्ति ] हेतु किया हुवा कर्म ही निष्काम कर्म है ,बाकी सब सकाम कर्म है !सांसारिक निर्वाह के लिए जो कर्म किया जाता है उसे उपजीविका कहते है ! व आत्म साक्षात्कार [आत्मज्ञान …

धर्म

1.कर्म करना धर्म है ! पर कौन सा कर्म ?कर्तव्य कर्म अर्थात करने योग्य कर्म और वह है-निष्काम कर्म !आत्म साक्षात्कार [आत्मज्ञान प्राप्ति ] हेतु किया हुवा कर्म ही निष्काम कर्म है ,बाकी सब सकाम कर्म है !सांसारिक निर्वाह के लिए जो कर्म किया जाता है उसे उपजीविका कहते है ! व आत्म साक्षात्कार [आत्मज्ञान …

त्यागी

एको अपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधाभृतेन तुल्यः दशाश्वमेधि पुनरेति जन्म कृष्णा प्रणामी न पुनर्भवाय !!अर्थात् -एक बार भगवान् कृष्ण को सही धारणा से प्रणाम [स्मरण] कर लिया तो उसकी तुलना दस अश्वमेध यज्ञ करने वाले से भी नहीं हो सकता है ! किन्तु इन दस अश्वमेध यज्ञ करने वाला का मुक्ति नहीं होता अर्थात् पुनर्जन्म …

एक ही साधे सब सधै

आध्यात्म -आत्मज्ञान और विज्ञान अलग-अलग नही है ! आत्मज्ञान, विज्ञान की पूर्णता है ,चरम है ! इसे जानने के बाद कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता ,कुछ भी अप्राप्त नहीं होता !इसे ही वेदांत कहते हैं .वेद=ज्ञान !वेदांत अर्थात् ज्ञान का अंत ,जहां ज्ञान का सीमा समाप्त हो जाय ,ऐसा कोई ज्ञान नहीं जो …

प्रवचन

ज्योति-प्रकाश पर्व ,दीपावली की शुभकामनाये –आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवती !ईश्वर का निराकार स्वरूप है, प्रकाश-ज्योति- नूर-Light !भाषा भिन्न है पर वो है एक ही ! सम्पूर्ण चराचर इन्ही के प्रकाश से प्रकाशित -सुंदर -सुगन्धित है , चैतन्य है,समर्थ है !—-नाम रूप भिन्न है ,पर सब में सर्वत्र ,घट-घट,विश्व के अणु-रेणु में व्याप्त है, इसलिए विष्णु भी …

प्रवचन

ज्योति-प्रकाश पर्व ,दीपावली की शुभकामनाएं –आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवति !ईश्वर का निराकार स्वरूप है, प्रकाश-ज्योति- नूर-Light !भाषा भिन्न है पर वो है एक ही ! सम्पूर्ण चराचर इन्हीं के प्रकाश से प्रकाशित -सुंदर -सुगन्धित है , चैतन्य है, समर्थ है !—-नाम रूप भिन्न है ,पर सब में सर्वत्र ,घट-घट, विश्व के अणु-रेणु में व्याप्त है, इसलिए …