अभ्यास
—-ये जो बीज [दीक्षा ] दिया गया है,ब्रम्ह विद्या दी गई है, धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए,उपरामता को प्राप्त कर ,धैर्ययुक्त बुद्धि से मन को परमात्मा-अंतरात्मा में स्थिर करते हुए,दूसरे विचारों को मन में न आने दो ,इससे सारे क्लेश,कर्म,विपाक ये सब साफ होते जाते है।—मेरी ही प्रीति बनी रहे/रहेगी।दृश्य या ध्वनि होते हुए भी मन-बुद्धि …