Dhayaan

ध्यान

ॐ आदित्य वर्णम – गुरूजी कहते है कि, जैसा आदेश है वैसा आज्ञाचक्र में मन को लगावो, ध्यान करना नही ध्यान में लाना कहता हूँ , ध्यान लगे न लगे जैसा मार्गदर्शन है वैसा आँख बंद कर बैठो, मन बाहर जाता है तो जाने दो, शरीर तो नही जाता ना , धीरे से मन भी नही जायेगा !

बाहर जिन जिन विषयादी = बाहर औरो में [व्यक्ति या पदार्थ ] में मन जाता है ,वहा से हटाकर पुन: पुन: आज्ञाचक्र में मुझ [ ईश्वर के रूप ] मे लगावो ! इस प्रकार अभ्यास से वैराग्य होगा [ वैराग्य होगा =बाहर मन औरो में आदत वश व्यक्ति या पदार्थ में लगा है उससे हटेगा ] व वैराग्य से ये प्रमथन स्वभाव वाला चंचल मन वश में होने में शक्य है ! जहां मन वश में हुवा तो सब वश में – संत कबीर के भाषा में – अटपट आतम रूप है झट – पट लखै न कोय ! मन के खटपट जब मीटे चट-पट दर्शन होय !!

बाइबिल में लिखा है तुम द्वार खटखटावो तुम्हारे लिए दरवाज़ा खुलेगा ,ये आज्ञाचक्र में ध्यान करना ही द्वार खटखटाना है ! यही ईश्वर का द्वार है -ये देह ही देवालय है व इसमे सभी का देव [ईश्वर] =आत्मदेव विराजमान है इन्ही का हमे बोध =साक्षात्कार करना है , और ये ही कबीर ,तुलसी ,सुरदास ,मीरा ,भगवान महादेव के भी देव [राम ] है व राम के भी ईश्वर अर्थात रामेश्वरम ! सर्वं ईश्वरम है ! ये सब आँख बंद कर इनका ही भीतर ध्यान करते है

अखिल ब्रम्हांड व सम्पूर्ण चराचर हम आप सब इसी से प्रकाशित ,चैतन्य ,सुंदर सुगन्धित है ! ये निराकार है , ज्योति स्वरुप है -आत्मा स्वयं ज्योतिर्भवती ! अलाल्ह नूर है ! GOD IS LIGHT ! भाषा भिन्न है पर वो है एक ही ! जिन्हें इनका बोध हो वह सुगुण रूप में राम [ ईश्वर ]है ! यही बीच बीच में सगुण रूप में भी प्रगट होते है ! जैसे त्रेता में राम रूप में द्वापर में कृष्ण रूप में वास्तव में यही सद्गुरु है सद =आत्मा अर्थात आत्मा ही सद्गुरु है जो हममे सबसे निकट हमारे अंतरात्मा है ! ये भीतर मिलेंगे ,इनको पाना =यही हो जाना ,बुध्धि का आत्म योग होने पर भेद समाप्त हो जाता है , फिर हरि है मै नाही

बाहर के पट मुंद के तू भीतर के पट खोल रे तोहे पिया [हरि ,सच्चा मित ,दोस्त ] मिलेंगे !

श्री गुरुजी वासुदेव रामेश्वर जी तिवारी

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