Lamp Of Wisdom | ज्ञानदीप

Lamp of Wisdom — ॥ श्री गुरुजी ॥

“दूसरों को दुःख न पहुंचे यही सबसे बड़ा परोपकार है, इसी में दूसरों का और अपना हित तथा समाज की भलाई है। दूसरों को दुःख पहुंचाने से बड़ा अपकार और पापकर्म नहीं है।”

अप्रिय सत्य न बोलना ही अच्छा है,जिस सत्य से हानि हो अपकार हो,वह पापकर्म हो जाएगा ऐसे पापकर्म से बचना है। पापकर्म से बचता हूँ, ऐसे अहंकार से भी (बचना है)बचते चले जाते है। हाँ किसी से न द्वेष हो न ममत्व।

मधुर वाणी बोलो,जितना मिले उतने में संतोष करो,मान-अपमान आते जाते रहते है।कोई कुछ भी बोले कैसा भी बोले जवाब देना नहीं,अपना काम है सहन करना,उल्टा उसका हित शरीर से, वाणी से ,मन से पहुंचाए पता नहीं क्यों बोल रहा है,शायद परीक्षा हो।अभ्यास करने वाला शांत हो जाता है।भलाई या प्रशंसा के प्रसंग में दूसरों की छवि की ओर और बुराई के प्रसंग में हम अपनी दोषों की ओर संकेत क्यों न करें।

देह की चिंता न करें,नाहि धन की, न घर की न ही सदस्यों की। फिर देखिए कैसी मस्ती आती है।

जब आप अपने आप को ढूंढने जाते है,एक वृत्ति बन जाती है,एकतानता जब हो जाती है,वही अखंड हो जाता है,तब निष्काम कर्म धर्म का रूप ले लेती है। स्वयं को खोजना ही भक्ति है,ज्ञान है।ज्ञान में ही डुबकी लगाकर कुछ हासिल होता है।

मार्ग की सब बाधाएं दूर हो जाती है,मन अत्यधिक शक्तिशाली हो जाता है,तथा सभी घटनाएं वैसे ही घटती है,जैसे आप चाहते है।साधक अहं से मुक्त होकर सिद्धावस्था तक पहुंचता है।

अभ्यास से जो लाइट मिलता है,उसमें संस्कारों के काजल धुलते चले जाते है,लाइट के अंदर हमेशा रहना चाहिए, वह ज्योति ही मार्ग प्रकाशित करता है।

आप स्वयं सच्चिदानन्द स्वरूप है उसे रियलाइज करें।चारों ओर आनन्द ही आनन्द है,रसास्वादन लेने में तल्लीन हो जाय।निज स्वरूप को जानना ही परमसत्ता का साक्षात्कार है।यह दिव्यत्व तुममें है।

।।श्री गुरुजी।।

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