Sahajawastha

सहजावस्था

जो समस्त जगत को ब्रह्म-मय देखता है, उसके लिए ध्यान करने न करने, बोलने न बोलने अथवा करने न करने को क्या शेष रह जाता है !
।।आदि शंकराचार्य।।

[यही सहजावस्था है ]
सहज -सहज सब कोई कहे, सहज न चिन्हे कोय आठो प्रहर भीनी रहे सहज कहावय सोय
उत्तमा सहजावस्था, मध्यमा ध्यान -धारणा, मंत्रजपस्यात अधमा, होमपूजा अधमाधम !
[ये आत्म योग के संदर्भ में है कोई अन्यथा न ले न जाने समझे – श्रीसदगुरुजी ]

बुध्धि का आत्म योग [आत्मज्ञान ] के लिए सबसे उत्तम सहजावस्था है। इसमे चलते-फिरते, उठते- बैठते, सोते -जागते, ग्रहण करते हुवे त्यागते हुवे हर समय अपने में रहना अर्थात अपने भीतर विराजमान ब्रम्ह में रमे रहना !
ये सहजावस्था है !

मध्यमा ध्यान-धारणा – नियमित ध्यान का अभ्यास=जिन जिन विषयादि, या अन्य बाहर किसी व्यक्ति या पदार्थ या अन्य में मन जाता है वहां से हटाकर पुन: पुन:अपने में अर्थात अपने भीतर विराजमान ब्रम्ह में [अंतरात्मा में] मन को आज्ञा-चक्र में लगाना यही ध्यान योग अभ्यास है। जैसे चित्रकार किसी का चित्र बनाता है तो मन में जिसका चित्र बना रहा होता है उसका छवि [अक्श] के सिवाय कुछ नही होता ध्यान ऐसा हो

मन्त्र जपस्यात अधमां – इसमे मन्त्र [ नाम ] का जाप करते हुवे नामी [ब्रम्ह; परमात्मा ] का स्मरण करते है नाम जपना व नामी को याद करना। मन एक समय एक ही कार्य करता है, नाम फिर नामी=जिसका नाम है उसका रूप का स्मरण एक समय ऐसा आएगा की नाम छुट जायेगा नामी रह जायेगा फ़िर ध्यान लग गया!

होम पूजा अधमाधम ! होम पूजा सबसे निम्न कहा गया है क्यों की आत्मा-योग अन्तरमार्ग है। बाहर के पट मूंद के तू भीतर के पट खोल रे तोहे हरि मिलेंगे।

टीप – साधक का यदि पिछला अभ्यास [साधना ]हो तो उपरोक्त स्तिथि सहज प्राप्त कर लेता है। अन्यथा नीचे से ही ऊपर जाता है , [पहले होम पूजा -फिर मन्त्र जाप -ध्यान धारणा से सहजावस्था को प्राप्त होता है ] सबका अनेक जन्म के संस्कार अनुसार, अवस्थानुरूप महत्व है।

भक्ति बीज पलटय नही जावय जुग अनन्त, निच उच घर अवतरय, अंत संत का संग !

श्री गुरुजी वासुदेव रामेश्वर जी तिवारी

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *