प्रकृति
बिना सब तरफ से मन को समेटे ईश दर्शन नहीं होता।वासना दूर होते ही परमात्मा दिखाई पड़ता है।जब साधक की सभी विचार तरंगें मन में समा जायें, तब वह शक्तियुक्त हो जाता है। बाहर के संस्कार अशान्ति उत्पन्न करते है,इन संस्कारों को एक एक करके हवन कर देना है।वृत्तियों के क्षीण होने पर विकार नष्ट …