ये स्वर्ण संधि है

ये स्वर्ण संधि है ,इसे नहीं छोड़ना चाहिए ! दिया तो अवश्य जलाना चाहिए। आगे मत बढ़ो, समाधि में मत जाओ, कहीं भी मत जाओ लेकिन दिया तो जलाइये।

बोलते है न भई सायंकाल हो गया अपने अपने देव घर में दिया जलाओ। देवघर क्या है देव तो इसके अंदर है ,ये शरीर अपना देवालय है, और ये देव उसी के अंदर है,देव ही तो बोल रहा है, और कौन बोल रहा है। लेकिन देव – ये शक्ति क्यों नहीं प्राप्त होती आपको। क्योंकि हमारा जो व्यवहार है – वो कामना से गन्दा हो गया है,क्रोध से सारी गंदगी फैल गई। लोभ से और गंदगी फैल गई। मोह से और गंदा होता चला गया। मान, मेरा मान नहीं मेरा कुल नहीं, वहाँ हम क्यूँ जायेंगे,ये जो अभिमान अहंकार है और गंदे और मत्सर, जेलस बिना कारण सबसे जलना,बताइये आप, कहाँ से हम..। तो तात्पर्य ये है जिससे ये सब चीज जाते है,ये दिया जलाना चाहिए। ये जो इसी में जो फंस जाते है, और उसके आगे जो बताया गया है,और ये प्रारबद्ध जो लेकर आया है,जो भाग्य में हैं,वो तो मिलेगा ही।कृष्ण ने आश्वासन दिया है, अनन्यनाशचिंत्ये… । उस साधक का योग और क्षेम मैं वहन करता हूँ, जो चाहिए उसको मैं बराबर व्यवस्था कर देता हूँ और सब मिल जाता है।और उसका मन बुद्धि चित्त अहं,ये सब निर्मल कर देता हूँ।क्षेम माने उसका कल्याण मैं कर देता हूँ।क्षेम माने कल्याण कर देता हूँ, क्षेम माने कल्याण, कल्याण माने निर्मल हो जाता है। उसका मन चित्त बुद्धि अपने, पर हो जाता है अन्यथा – अत्यंत मलिनो देहो, इस देह सरीखा मलिन और कोई देह नहीं, मलयुक्त देह जरा भी पक जाय तो उगते/पकते नहीं,.. ध्रान आता है उसमें कितना बढ़िया देह है आपका। अत्यंत मलिनो देहो, लेकिन ये मल युक्त चीज है। इससे तो पनही भी तो नहीं बनता, चप्पल भी नहीं बनता।

देहि चात्यत निर्मलाः।देहि माने आत्मा, ये जीवात्मा है, अत्यन्त निर्मल है वहाँ मल का विक्षेप जरा भी नहि,अत्यंत निर्मल है। ऐसा जो जानता है अभ्यास करके ऐसा जो गुण ज्ञान हो गया है। दिया जलाकर वो चिराग ले जाती है, वहाँ तक।जो चिराग तक पहुँचके और अनुकरण करके जहाँ तक वो पहुँच गया है,वो क्या है? असङ्गो अहं इति ज्ञात्वा – तब वो असंग हुआ।नहीं तो..आते है। शौचं इति पवित्रते, तब वो पवित्र हुआ। नहीं तो मल/बदबू,ही आते है खाली इसमें।
ओम इति पवित्रो पवित्रावां सांगो…माने अंतर भी शुद्धि हो गया बाहर भी हो गया,उठाये पानी ऐसा हो गया। भैय्या ऐसा अभ्यास करने की क्या जरूरत है। अगर इस मंत्र से बाह्याअभ्यंतर आप असङ्ग हो गये पवित्र हो गये, शौचं इति प्रच्छ्यते। ऐसे ही होता होगा तो फिर हम शब्द अपने वापस लेते है। आप तो फिर संत है और महंत है।फिर आपमें न क्रोध है न कामना वासना इच्छा है, और न कोई लोभ है न भय है और न कोई मद है न मत्सर है, विद्वेष है न जेलस है। सोचिये ये छः बताया ये पांच बताया, ये क्या-क्या आपमें है ,क्या-क्या विदा हो गया, कि सब है अभी। तो तात्पर्य ये है,

नेहाभिक्रमनाशो…
कृष्ण ने कहा है मेरे चिंतन में जो रात दिन लगा हुआ है, अहर्निश, अखण्ड रूप से जो लग गया है डूब गया है।उसका संसार सब,पगला गया है, उसकी रखवाला मैं हूँ। कृष्ण कहते है ,उसका रखवाला मैं हूँ, योगक्षेमम व्हाम्यम। मैं उसको सब कारोबार सम्हालता हूँ,मैं उसकी रक्षा करता हूँ, इससे बढ़कर क्या आश्वासन चाहिए। और जब आप इस शरीर से आप जायेंगे, अच्चिदानंद मार्ग में ब्राइट लाइट में आप जायेंगे।ऐसे लोकों को क्रास करते-करते ऐसे अनेक जन्म बीतेंगे, हजारों जन्म बीतेंगे। लेकिन फिर से माँ के पेट में नहीं आयेंगे। ऐसा तो कभी भले कभी आ जाओ ये मैं नहीं कह सकता हूँ। लेकिन वो महिला हो तो सिद्धा होगी और पुरुष होगा तो सिद्ध होगा। जहाँ तहाँ अक्षर धाम अपियर डिसअपियर हुए सिद्ध पुरुष हो गया।जैसे गजानन महाराज उनको स्वयंभू कहा गया, सिद्ध पुरुष है वो, अभी तो वो कई जन्म होना,जिसको परम पद कहते है। मैं नाक क्षोभ नहीं कहता हूँ। तो तात्पर्य ये है हमारे कहने का,जो आपको सतपुरुष अभ्यास कहकर जो दिया है, आप दिया जलाइये आप। ये दिया इसका कोई उपमा ही नहीं है। उपमा,किसके लिये है वही आत्मा,आत्मा ही परम है। इसलिए उसको परम आत्मा कहा।इसी आत्मा को लोगों ने उपदृष्टा कहा,अनुमंता कहा,भर्ता कहा ,भोक्ता कहा, महेश्वर कहा और आत्मा को ही परम कह के परमात्मा कहा। नाम में भेद है लेकिन कोई भेद नहीं।

ये जो आप भीतर की ओर प्रयत्न करके जो जा रहे है, जो आपने दिया जलाया है।इसको बुझने मत दो, बुझ भी गया तो भी जलाना,शाम को तो भी जलाना संधिकाल आ गया तो भी जलाना।रोज जलाना, इसमें कोई अंतराय रह नहीं जाती। बिच्छू काम डंक मारना, अपना काम है बचाना।इस तरह से जीवन यापन करना चाहिए। ये दिया आपने जला दिया और जिस दिन से आपको दर्शन होता है, उस दिन से नया प्रारबद्ध नहीं बनता।इतना मैं शास्त्र के आधार और अपने ये अनुभव के आधार से मैं बोल रहा हूँ। अपने स्वानुभूति विषय जो है।

जिस देह पर तुम अभिमान करते हो, देखा करते हो वो मल का भंडार है और कुछ नहीं है।अत्यन्त मलिनो देहो, देहि चाचत्य निर्मलाः। देहि माने आत्मा अत्यन्त निर्मल है।ये तो हमने आरोप किया है, असङ्गोइति अहं.. जब ऐसा दिया जलाने पर जब ऐसा जब दर्शन होए, तब आप असङ्ग होते है, तब बाहर भीतर आप पवित्र होते है। उस ज्योति से उस मणिवत ज्योति से उसके दर्शन मात्र से बार-बार दर्शन होता है,दूसरा को तो दिखता नहीं ये तो स्वानुभूति है।स्वानुभू विषय ये स्वयंभू है। वो ज्योति स्वयंभू है, आत्मा स्वयंभू है। ऐसा है तो वो ज्योति के रूप में दर्शन, जिसको ये एक बार भी, एक बार भी अगर दर्शन हो जाय तो इस जन्म में आपका कल्याण हो गया।

ऐसी संधि मिलने पर इसे गवाना नहीं चाहिए यही उत्तरायण है, ज्योति ही उत्तरायण है। जब जायेंगे तो इसी ज्योति मार्ग में जायेंगे। और जिनकी ज्योति नहीं जगी, जो अंधेरे में अभी भी है, वो जब जायेंगे तो अंधेरे मार्ग में जायेंगे ,अंधेरे में चन्द्रमंडल यमलोक में जायेंगे।

ये चन्द्रमंडल नहीं सूर्यलोक है, ये जो आप जाते है,बड़ा अंतर है इसमें ये जो विषय है छोड़ देता हूँ, लंबा हो जायेगा। तो तात्पर्य ये है कि कृष्ण ने कहा है मैं तुम्हारे योग क्षेम को वहन करता हूँ, फिर क्या चिंता है अगर कृष्ण भगवान भारत में प्रकट हुए है, महाभारत हुआ हो, और फिर मंदिर इधर उधर है संप्रदाये है अगर ये सत्य है तो ये भी सत्य है। इसलिए हमारा क्या होगा ये कोई चिंता न करें।जन्मतः बालक तो अपना कुछ करता नहीं लेकिन लोग जो है उसकी माँ करती है, दाई करती है ,सब लोग करते है, पालन पोषण होता है सब कुछ होता है। जिस समय मेजर होता है उस समय माने न माने करे न करे। तब तक पालक उसका उत्तरदायित्य रहता है। अच्छा रहता है तो ठीक है, अन्यथा तू जान तेरा कारोबार जान, फिर सरकार उसका उत्तर दायित्य होता है। ये क्या करता है क्या नहीं करता है, सरकार के किताब में उसका नाम आ जाता है।कि सरकार सर्विस देता है कुछ साल के बाद, .. भी तो सर्विस नहीं दे, तब तक माँ बाप मेरे पालक जवाबदार है। तो तात्पर्य ये है ये मनुष्य का जन्म मिलते हुए, मनुष्य का जन्म मिला, स्वास्थ लाभ हुआ, और अच्छे वर्ण में अच्छे कुल में, भारत जैसा देश भारत भूमि पवित्र भूमि पवित्र देश में जन्म ले करके अगर ये संधि आपने गवां दिया। तो आई गाड़ी अगर वो नहीं, टिकट कटा लिए ठीक है आप दीक्षा ले लिए ठीक है। लेकिन गाड़ी में बैठना चाहिए की नहीं। अगर गाड़ी में नहीं बैठोगे तो कोई गाड़ी जो है तीन मिनट खड़ी होती है ,कोई दस मिनट खड़ी होती है।अगर आप नहीं बैठे गाड़ी में तो क्या करती है पुक् करके निकल जाती है। जो गाड़ी में बैठ गये वो पुक करती है तो कितना अच्छा लगता है वो पुक। और जो बैठे है स्टेशन पे और गाड़ी चली, तो कितना अच्छा लगता है। और जो स्टेशन के बाहर दौड़ के आ रहा है पुक सुनता है तो कितना अच्छा लगता है। पुक एक ही है माने सीटी एक ही है लेकिन व्यवहार भेद से परिणाम कितना अंतर है। वही सीटी है ,बैठ गया आदमी उसके अंदर तो आनन्द मिल गया। और जो लटक गया उसको तो, माने हुत हो गया उसको वो, अरे हुत। क्या ऐसा भी अर्थ हो गया उसका।

संधि मिली है दिया जला लो। तुलसी दिया अनूप है – उसकी कोई उपमा नहीं आत्मा की कोई उपमा नहीं, परमात्मा है। परमात्मा एक ही होता है चाहे हिंदू हो मुसलमान हो यहूदि हो, कुछ भी हो माने पारसी हो कोई भी हो जितने वो एक ही है। परम आत्मा जो है एक..जो है एक है। सब के लिए है उसमें कोई अंतर नहीं। इसलिए उसको कहा कोई उपमा नहीं, क्योंकि वह एक ही चीज है उसके जैसा कोई दूसरा कोई है ही नहीं। इसलिए वो उपमा रहित कहा। अनूप माने अन उप उपमा नहीं दे सकते आप। तुलसी दिया, ये जो दिया जो है जलाने के लिए, ये दिया जब जला दिये तो, कोई उपमा नहीं है। वो तुम्हीं हो और कोई नहीं वही बोल रहा है।नहीं तो अभी आप नहीं बोल रहे है आपकी वासना बोल रही है। क्योंकि आत्मा पर आपने आरोप कर दिया। आपने जो आरोपी कर दिया यहाँ अहं जो शब्द है,मैं ये जो मैं बीच में जो है दलाल एजेंट कमीशन एजेंट,मैं करता हूँ, मैं देता हूँ, मैंने किया नहीं तो तुम मर जाते ,ऐसा हो ,जाता वैसा हो जाता,ये सब ठीक है। तो तुलसी दिया अनूप है, दिया करो सब कोई,दिवाली दिन सब कोई दिया करते, ये तो बिल्कुल टाइम बीइंग है, ये सब।अंदर का दिया है उसको जलाओ सब कोई जलाओ। महात्मा बनो, महान है आत्मा यस्य स महात्मा। वही महान आत्मा हो गया नहीं-नहीं ऐसा नहीं है ये जो बोलते है ऐसा नहीं है, अभी ये है डण्डा खाया वो नहीं

तुलसी दिया अनूप है दिया करो सब कोई, कर को धरो न पायो जो कर दिया न होय। अंधेरा है बिजली चमक आई अगर आपके दिया न हो तो कुछ मिलता है क्या?घर में कौन सा चीज कहाँ रखा है कभी नहीं मिलता। तो भई दिया ले के दिया हाथ में लो वो मिल जायेगी।

इसी प्रकार से नाना जन्म बीत गये, नाना जन्म हो गये उस कारण से और जन्म होने वाले है। इसको जानने के लिए ये दिया जलाओ। ये दिया जब जला लोगे, ये दिया जब तुम्हारे हाथ में आ जायेगा।तब भूत-भविष्य सब तुम्हारे समझ में आ जायेगा। जो आपने कर्म किया शुभाशुभ है जो कुछ है ये सब आपके समझ में आ जायेगा और भी बिना दुःख भोगे, भोगना तो होगा लेकिन दुख नहीं होगा। भोगना तो पड़ता है लेकिन दुख नहीं होता अभी आपको सुख में सब कट जाते है। अभी आश्रम पर कृष्ण ने ले लिया राम ने भी ले लिया। जो संत आये उन्होंने भी लिया। इस प्रकार से जीवन में परिवर्तन हो जाता है। और ये आश्वासन है चिंता की कोई बात नहीं। इस दिया से बढ़कर और कोई दिया नहीं,आदमी पवित्र होता है।
वो मंत्र(ओम पवित्रो वाला शायद) है मंत्र से तो कुछ होता नहीं, ये सब कर्मठ पना है।कर्मठ पना से स्वर्ग होता है। दिया तुलसी दिया अनूप है अरे बाबा, कुछ न कुछ अपने कमाई से से देना चाहिए। ये व्यवहार है वही दोहा है। क्योंकि जो आप दोगे अगले जन्म में आपको वही मिलेगा। उसमें कोई फर्क नहीं है, गेहूं देओगे गेहूं मिलेगा, पैसा दोगे पैसा मिलेगा।कपड़ा दोगे कपड़ा मिलेगा, रोटी देओगे रोटी मिलेगा। तो तात्पर्य ये है तुलसी दिया अनूप है दिया करो, देना चाहिए अपने कमाई में, दिया करो सब कोई, सबको देना चाहिए, सब कोई सीखो। अपने हिस्सा में से अपनी कमाई में से देना चाहिए। निकाल के रखना चाहिए, देना चाहिए। कहाँ देना चाहिए बात अलग है, दुखीजन है वहाँ देना चाहिए। भूखे प्यासे है जो। हट्टे कट्टे मांगते है उनको नहीं देना चाहिए।

क्योंकि अगर दिये नहीं आप जन्म लेने के बाद आपको क्या मिलने वाला है। कर का धरा न पाइयो, जो कर दिया न होय। नहीं दिया तो हाथ का धरा हुआ भी नहीं मिलेगा आपको। माने हाथ का धरा इस जन्म में भी माँ बाप, सब कुछ दे दिया, और किसी ने नहीं दिया आपको भई ये जीवन को अच्छा बनाओ। अगर तुम्हारे हाथ ने दिया नहीं होगा तो वो भी तुमको तुम्हारे काम में नहीं आयेगा। कि तुमने दिया नही, लोगों ने दिया। हिंदी में कहावत है, फुस का पापड़ और उधार का खाव, कितना दिन चलेगा। ठण्डी खूब पड़ती है, घास का फुर लगाओ,ये अ फुरर, कितने देर तक साथ दे सकते है आपका। और उधार का सब कब तक मिलेगा खाने को आपको ये। ऐसी बात है, कहाँ तक हाथ का धरा चीज जो हमने दिया नहीं है तो कितना भी कोई दे, उं उं वो हाथ नहीं आता।

श्री गुरुजी वासुदेव रामेश्वर जी तिवारी

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