सर्वधर्माम परित्यज्य मामेकम शरणम ब्रज !
ब्रज मायने आवो नहीं जावो होता है ! धर्म मायने धारणा ,अर्थात सभी प्रकार के धारणा को त्याग के मुझ मायने आत्मा [अंतर-आत्मा ]अर्थात अपने शरण में जावो ,आत्मा ही सदगुरु है जो हमारे भीतर शक्ति रूप में विराजमान है, वो सर्वत्र कण-कण में है, व सबसे निकट हमारे भीतर है हम शक्ति से ये शरीर चल रहा है ! व हमारे मन[ बुध्धी] का आत्मयोग भीतर होगा इसलिए अपने अर्थात आत्मा [ आत्मा परम है इसलिए परमात्मा भी कहते है ] के शरण में अर्थात अपने शरण में जावो कहा गया है , वही सदगुरु है , सत=आत्मा !
कृष्ण नाम आत्मा [परमात्मा ] का नाम है ! वो कृष धातु और अन प्रत्यय से बना है [ कृष +अन ] कौन कृष्ण ? कृष जिसका ष हलन्त है ! कृष =कर्ष =आकर्षण Attraction जिसने सबको आकर्षित किया है धारण किया है !अर्थात जो समपुर्ण संसार को आकर्षित किया है, धारण किया है उस आत्मा [परमात्मा ] का नाम कृष्ण है ! जो सबमे व्याप्त है .ऐसी धारणा के साथ अपने भीतर विराजमान आत्मा [परमात्मा, अंतरात्मा ] को भजेंगे तब बुध्धी का आत्म योग होगा ! अर्थात परमात्मा को प्राप्त करेंगे ,योग भीतर होता है ,उनको प्राप्त करना मायने वही हो जाना है ! बाहर भी वही है पर द्वैत भाव से भजेंगे तो आपकी संकल्प , कामनाए पूर्ण होगी लेकिन आप उन्हें [परमात्मा ] को नहीं प्राप्त करेंगे , क्यों की बुध्धी का आत्म योग भीतर ध्यान योग अभ्यास से होता है ,ऐसा भजना ही सही है ! यदि द्वैत भाव से बाहर भजेंगे तो योग नहीं होता ,आत्म -योग के लिए ऐसा भजना अविधी पूर्वक है . जितने मंदिर , देवालय आदि है ,वे सब स्मारक अर्थात लक्ष्य का स्मरण दिलाने वाला है ! कारक-सर्वत्र कण -कण में सम्पूर्ण चराचर में व सबसे निकट हमारे भीतर विराज मान है,हम इनके हे चेतना से चैतन्य ,प्रकाशित है ! जो सबमे शक्ति के रूप में व्याप्त है वही सदगुरु है .ऐसी धारणा के साथ अपने भीतर विराजमान आत्मा [परमात्मा ] को भजेंगे तब बुध्धी का आत्म -योग होगा . अर्थात परमात्मा को प्राप्त करेंगे . .परमात्मा को प्राप्त करना मायने वही हो जाना है !
योग भीतर होता है ! बाहर भी वही है पर द्वैत भाव से भजेंगे तो संकल्प , कामनाए पूर्ण होगी लेकिन उन्हें [परमात्मा ] को नहीं प्राप्त करेंगे क्यों की बुध्धी का आत्म योग भीतर ध्यान योग अभ्यास से होता है . ऐसा भजना ही सही है !. हमें उनके=अपने अर्थात अपने अंतरात्मा के शरण में जाना है !
! श्री गुरुजी के प्रवचन व् श्रीमद्भागवत गीता पर आधारित !
श्री गुरुजी वासुदेव रामेश्वर जी तिवारी